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सर्व कार्य सिद्धि होरा मुहूर्त

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प्रिय पाठक गण- -                     भारतीय ज्योतिष के 3 अंग गणित सिद्धान्त और होरा है ।और जिस प्रकार से जातक ग्रंथों मे होरा का महत्व है उसी प्रकार मुहूर्त मे भी होरा का महत्व है होरा मुहूर्त अपने आप मे सिद्ध मुहूर्त होता है । मानव के जीवन मे कुछ समय ऐसा भी आता है की न चाहते हुये भी कार्य करना पडता है जैसे यात्रा पूर्व निर्धारित तिथि पर भी होता है और अचानक भी ठीक इसी प्रकार बहुत सारे कार्य हमे अचानक करना पड जाता है । अचानक यात्रा करनी है मगर दिशा शूल है अतः या तो हम न जाये या दिशा शूल मे यात्रा करे ।ऐसे ही परिस्थितियों का आकलन करके मनीषियों ने होरा मुहूर्त का निर्धारण किया ताकी कोई कार्य अचानक करना पड जाये तो हम होरा मुहूर्त के माध्यम से कार्य करले और हमे कार्य की सिद्धि प्राप्त हो जाये । होरा मुहूर्त के संबंध मे शास्त्रों मे लिखा है । कालहोरेति विख्यातं सौम्ये सौम्यफलप्रदा । सूर्य शुक्र बुधाश्चंद्रो मंदजीवकुंजा: क्रमात् ।। होरा मुहूर्त पूर्ण फलदायक और अचूक होता है । आइये जानते है यह मुहूर्त कैसे बनता है । आप सभी जानते है सूर्योदय से सूर्योदय तक का 1 अहोरात्र होता है और 1 अहो

विशेष महत्वपूर्ण मुहूर्त ।

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प्रिय पाठक गण--                   भारतीय ज्योतिष मे मुहूर्त का विशेष महत्व है हम कोई भी कार्य करना चाहते है तो अच्छे मुहूर्त मे ही करना चाहते है यात्रा हो विवाह उपनयन या पुजा पाठ अथवा कोई भी शुभ कार्य करने के पहले हमे मुहूर्त की आवश्यकता होती है । आइये सबसे पहले हम जानते है कि मुहूर्त क्या है हमारे यंहा समय की गणना के लिये बहुत सी पद्धतियाँ है और हम सूक्ष्म से सूक्ष्म गणित इन्हीं पद्धतियों के माध्यम से करते है इन्हीं पद्धतियों मे एक पद्धति है मुहूर्त इस मुहूर्त के पद्धति से हम शुभ समय निकालते है जिसमें हम शुभ कार्य आरंभ करते है । 1 मुहूर्त का समय 2 घटी अर्थात् 48 मिनट होता है । और इस प्रकार हमारे 1 दिनमान मे 16 मुहूर्त निवास करता है । पंच्चांग देखने की विधि जानने के लिये यहां क्लिक करे ये हमने संक्षिप्त मे मुहूर्त का परिचय बताया है । आप सभी जानते है कि हमारे जीवन मे मुहूर्त का क्या महत्व है और उसकी क्या उपयोगिता है ये बताने की आवश्यकता नहीं है । उपनयन, विवाह, गृह प्रवेश, गृहारंभ, देव प्राण प्रतिष्ठा आदि बहुत से कार्य ऐसे है जिनके लिए हम पहले मुहूर्त का निर्धारण करते है फिर

करण कैसे बदलते है ।

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प्रिय पाठक गण- -                      भारतीय ज्योतिष मे काल के अंग के रूप मे करण का भी महत्व है । एक तिथि मे 2 करण होते है । तिथि के आधे भाग को करण कहा जाता है ।सूर्य से चंद्रमा की की प्रति 6 अंश की दुरी पर एक करण होता है और 12 अंश पर 1 तिथि होता है ।इस प्रकार 1 मास मे 60 करण होते है मुख्य 7 करण है जो चर करण कहलाते है 1 माह मे इन 7 करणो की (प्रत्येक करण की) आठ (8)आवृति होती है बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज, एवं विष्टि इनका नाम है ये चर करण कहलाते है । इसके अलावा 4 करण और होते है जो स्थिर करण कहलाते है ये कभी बदलते नहीं है शकुन, चतुष्पाद, नाग, और किस्तुघ्र इनका नाम है इन चारो कि तिथि हमेशा एक ही होती है जैसे कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के उत्तराध्र मे शकुन, अमावस्या के पूर्वार्ध मे चतुष्पाद, और उतराध्र मे नाग तथा शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के पूर्वार्ध मे किंस्तुघ्र करण होता है । पंच्चांग देखने की विधि जानने के लिये यहां क्लिक करे करण तथा करण का समाप्ति समय निकालने की विधि- किसी भी दिनांक का करण निकालने का सूत्र इस प्रकार है । जिस तिथि का करण ग्यांत करना हो (4 स्थिर करणो को छोडकर) उस तिथि क

स्पष्ट चंद्र कैसे निकाले ।

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प्रिय पाठक गण- -                      भारतीय ज्योतिष मे चंद्रमा का बहुत ही महत्व है ज्योतिष मे चंद्रमा को मन का कारक बताया गया है साथ ही चंद्रमा को शीघ्रगामी ग्रह भी बताया गया है । वास्तव मे चंद्रमा सभी ग्रहो से तीव्र चलने वाला ग्रह है ।  चंद्रमा के राशि अंशों के द्वारा तिथि, नक्षत्र, योग आदि का निर्धारण होता है अतः स्पष्ट चंद्र का बहुत महत्व है । आजकल कइ पंचांगो मे दैनिक ग्रह तालिका मे चंद्रमा का स्पष्ट मान राशि अंश कला विकला मे लिखा मिल जाता है  मगर कइ पंचांगो मे नही लिखा होता है ।  पंच्चांग देखने की विधि जानने के लिये यहां क्लिक करे हम अक्सर देखते है कि पत्रिका बनाते समय अन्य ग्रहो के साथ हम चंद्रमा का स्पष्ट मान भी पंचांग से देखकर लिख देते है मगर चंद्रमा अति शीघ्रगामी होने के कारण प्रातः से इष्टकाल तक बहुत अंतर आ जाता है अन्य ग्रहो मे कोई खास अंतर नहीं होता है मगर चंद्रमा मे बहुत अंतर आ जाता हैं इसलिए इष्टकाल के अनुसार चंद्रमा का स्पष्ट मान निकालकर ही पत्रिका बनानी चाहिए । आइये आज हम स्पष्ट चंद्र का मान निकालना सिखते है । माना कि हमे दिनांक 1 अप्रैल 2017 को वाराणसी