करण कैसे बदलते है ।

प्रिय पाठक गण- -
                     भारतीय ज्योतिष मे काल के अंग के रूप मे करण का भी महत्व है । एक तिथि मे 2 करण होते है । तिथि के आधे भाग को करण कहा जाता है ।सूर्य से चंद्रमा की की प्रति 6 अंश की दुरी पर एक करण होता है और 12 अंश पर 1 तिथि होता है ।इस प्रकार 1 मास मे 60 करण होते है मुख्य 7 करण है जो चर करण कहलाते है 1 माह मे इन 7 करणो की (प्रत्येक करण की) आठ (8)आवृति होती है बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज, एवं विष्टि इनका नाम है ये चर करण कहलाते है । इसके अलावा 4 करण और होते है जो स्थिर करण कहलाते है ये कभी बदलते नहीं है शकुन, चतुष्पाद, नाग, और किस्तुघ्र इनका नाम है इन चारो कि तिथि हमेशा एक ही होती है जैसे कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के उत्तराध्र मे शकुन, अमावस्या के पूर्वार्ध मे चतुष्पाद, और उतराध्र मे नाग तथा शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के पूर्वार्ध मे किंस्तुघ्र करण होता है ।
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करण तथा करण का समाप्ति समय निकालने की विधि-
किसी भी दिनांक का करण निकालने का सूत्र इस प्रकार है ।
जिस तिथि का करण ग्यांत करना हो (4 स्थिर करणो को छोडकर) उस तिथि के पहले अर्थात् गत तिथि की संख्या को 2 से गुणा कर 7 से भाग देने पर जो शेष बचे बवादि क्रम से करण पूर्वाह्न मे होगा ।
जैसे माना की 1 अप्रैल 2017 को वाराणसी मे करण और समाप्ति काल ग्यात करे ।
पंचांग मे देखा तो 1 अप्रैल 2017 को पंचमी तिथि है ।
गत तिथि अर्थात् 4×2=8÷7=शेष 1 इस हिसाब से बव करण हुआ और उतराध्र मे बालव करण हुआ ।


करण का समाप्ति काल निकालने का सरल तरिका है तिथि आरंभ से अंत तक की अवधि को 2 से भाग देकर लब्धि को तिथि आरंभ काल मे जोडने से करण की समाप्ति काल होगा और शेष समय उतराध्र करण की समाप्ति समय होगा ।
जैसे 1 अप्रैल 2017 को वाराणसी मे बव करण सिद्ध हुआ है 31 मार्च को रात्रि 8.41 अर्थात् 20. 40 से पंचमी तिथि शुरू हुआ है और पंचमी की समाप्ति समय 17.59 है । अतः पंचमी तिथि का कुल भोग समय 21 घंटा 8 मिनट है इसको आधा करके 20.40 मे जोडा तो प्रातः 7.14 बव करण की समाप्ति काल आया इसको घटी पल मे लिखने के लिये वाराणसी का सूर्योदय 5.52 घटाया तो 1.22 आया इसको 5 से गुणा कर 2 से भाग देकर घटी पल बनाया तो 3 घटी 25 पल आया । अर्थात् वाराणसी मे सूर्योदय से 3.25 घटी उपरांत बव करण समाप्त हो जायेगा इसी प्रकार उतराध्र का भी समय निकाल लेना है ।
करणो का शुभाशुभत्व :- विष्टि करण को भद्रा कहते हैं जिन तिथियों के पूर्वार्ध (प्रथम चरण) अथवा उतराध्र (अंतिम 2 चरण) मे विष्टि करण होता है । उस तिथि को भद्रा तिथि कहते है । भद्रा तिथि मे सभी शुभ कार्य वर्जित है । शुक्ल पक्ष चतुर्थी उतराध्र, अष्टमी उतराध्र, एकादशी उतराध्र, और पूर्णिमा पूर्वार्ध एवं कृष्ण पक्ष की तृतीया उतराध्र, सप्तमी पूर्वार्ध, दशमी उतराध्र चतुर्थी पूर्वार्ध भद्रा तिथि होती है ।


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