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नवंबर, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

होरा साधन और चक्र निर्माण

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जन्म पत्रिका का निर्माण तीन वर्गों का होता है सप्त वर्गी, दश वर्गी, और षोडश वर्गी । सामान्यतः सप्त वर्गी जन्म पत्रिका ही ज्यादा प्रचलन मे है अतः हम सप्त वर्गी का ही वर्णन करते है । सप्त वर्गी के सात वर्गों के नाम इस प्रकार है लग्न, होरा, द्रेष्काण, सप्तमांश, नवमांश, द्वादशांश, और त्रिशांश । जन्म पत्रिका मे लग्न और चलित के बाद होरा चक्र का नम्बर आता है । सबसे पहले हम समझते है कि होरा का अर्थ क्या है । होरा राशि विभाजन का खंड है अर्थात् एक राशि किसी भी राशि के आधे भाग को होरा कहा जाता है जैसे लग्न 5 घटी की होता है तो उसका होरा अढाई घटी की होगा । यंहा प्रकरण राशि का है अतः राशि का आधा भाग होरा होता है इसको सही तरह समझने के लिये हम ऐसे समझ समझ सकते है कि एक राशि के दो भाग है प्रथम भाग को प्रथम होरा और द्वितीय भाग को द्वितीय होरा कह सकते है इस प्रकार देखा जाय तो एक राशि 30 अंश का होता है तो उसका आधा अर्थात् 15 अंश का प्रथम होरा होता है और प्रथम 15 अंश के बाद के 15 अंश द्वितीय होरा होता । इन राशियों के होरा स्वामी सूर्य और चंद्रमा होते है । सौर मंडल की राशियां भी सम विषम होती ह

चलित चक्र और प्रयोग विधि

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जन्म पत्रिका मे लग्न के बाद दूसरा स्थान चलित चक्र का आता है फलित ज्योतिष मे कहा गया है । विना चलित चक्रेण यथोक्तं भावजं फलम् । नारि यौवन सम्प्राप्तं पतिहीना यथा भवेत् ।। जिस प्रकार से षोडश शृंगार से युक्त भरपुर यौवन को प्राप्त षोडशी पत्नि के विना कोइ मुल्य या कोइ सार्थकता नहीं रह जाती है ठीक उसी प्रकार से षोडश वर्ग के अलंकार से युक्त जन्म पत्रिका का चलित चक्र के विना कोइ सार्थकता नहीं रह पाती है । शास्त्रों मे लिखा है । भाव प्रवृतौ हि फल प्रवृति: पूर्ण फलं भावसमाकेषु । ह्रास: क्रमाद् भावविराम काले फलस्य नाश:कथितौ मुनिन्द्रै:।। अर्थात् भाव की पुष्टि से ही फलादेश की ओर प्रवृत होना चाहिए ।जिस भाव के अंश पूर्ण हो तो पूर्ण फल उस भाव को मिलेगा भाव के विराम होने पर या ह्रास होने पर उस भाव का फल भी नष्ट हो जाता है । भाव और संधि के विचार से ग्रहो को ठीक ठीक स्थिति बताने के लिये ही चलित कुंडली बनाई जाती है भाव और संधि से यह स्पष्ट हो जाता है कि भाव का आरंभ कंहा से है मध्य कंहा है और अंत कंहा है । नोट- पिछले पोस्ट मे आपने भाव लग्न निकालने की विधि से भाव लग्न निर्धारित कैसे करते

अयनांश साधन की रीति ।

      ।। इष्टकालिक अयनांश साधन की रीति ।। अथ शराब्धियुगै रहित: शक्रो, व्यवहृत: खरसैरयनांशकां:। मधुसितादिकमासगणं प्रति,  शरपलै: सहितं कुरू सर्वदा ।। अयनांश जानने के लिये शाके संवत् मे 445 घटाकर जो शेष बचे उसमें 60 से भाग देने पर लब्धि अयनांश और शेष उसकी कला होती है ।चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से जन्म मास तक जितने मास विते हो उस संख्या को 5 से गुणा करने पर जो लब्धि आये वह विकला होता है और इस विकला को जोडने से इष्टकालिक अयनांश होता है ।                            || -उदाहरण- || शाके संवत् प्राप्त करने का सबसे सरल तरीका है सन् मे 57 जोडने से विक्रम संवत् होता है और इस विक्रम संवत् मे 135 घटाने से शाके संवत् होता है जैसे 2017मे 57 जोडा तो 2074 आया इसमें 135 घटाया तो 1929 शाके संवत् प्राप्त हुआ । इस शाके संवत् 1929 मे 445 घटाया तो 1494 आया इसमें 60 से भाग दिया तो लब्धि 24 और शेष 54 आया विकला जानने के लिये हमने चैत्र माह का अंक 1 लिया इसमें 5 से गुणा करने पर गुणनफल 5 आया इसको हमने 24/44 मे जोडा तो इष्टकालिक अयनांश 24/44/05 आया । ग्रह लाघव के मत से भी अयनांश निकालने की यही विधि है अंतर क