होरा साधन और चक्र निर्माण

जन्म पत्रिका का निर्माण तीन वर्गों का होता है सप्त वर्गी, दश वर्गी, और षोडश वर्गी ।
सामान्यतः सप्त वर्गी जन्म पत्रिका ही ज्यादा प्रचलन मे है अतः हम सप्त वर्गी का ही वर्णन करते है ।
सप्त वर्गी के सात वर्गों के नाम इस प्रकार है लग्न, होरा, द्रेष्काण, सप्तमांश, नवमांश, द्वादशांश, और त्रिशांश ।
जन्म पत्रिका मे लग्न और चलित के बाद होरा चक्र का नम्बर आता है ।
सबसे पहले हम समझते है कि होरा का अर्थ क्या है । होरा राशि विभाजन का खंड है अर्थात् एक राशि किसी भी राशि के आधे भाग को होरा कहा जाता है जैसे लग्न 5 घटी की होता है तो उसका होरा अढाई घटी की होगा ।
यंहा प्रकरण राशि का है अतः राशि का आधा भाग होरा होता है इसको सही तरह समझने के लिये हम ऐसे समझ समझ सकते है कि एक राशि के दो भाग है प्रथम भाग को प्रथम होरा और द्वितीय भाग को द्वितीय होरा कह सकते है इस प्रकार देखा जाय तो एक राशि 30 अंश का होता है तो उसका आधा अर्थात् 15 अंश का प्रथम होरा होता है और प्रथम 15 अंश के बाद के 15 अंश द्वितीय होरा होता ।
इन राशियों के होरा स्वामी सूर्य और चंद्रमा होते है ।

सौर मंडल की राशियां भी सम विषम होती है अतः सम विषम के कारण होरा का क्रम भी सम विषम के अनुसार होता है जैसे ।
विषम राशि-  मेष,मिथुन, सिंह, तुला, धनु, और कुंभ है इन राशियों मे प्रथम होरा सूर्य का होता है और द्वितीय होरा चंद्रमा का होता है । अर्थात् विषम राशियों मे प्रथम होरा 1 से 15 अंश तक सूर्य का होरा होगा और 16 से 30 अंश तक चंद्रमा का होरा होता है ।
इसी प्रकार
सम राशि- वृष, कर्क, कन्या, वृश्चिक, मकर, मीन है इनके प्रथम होरा चंद्रमा  का है और द्वितीय होरा सूर्य  का होता है।
अर्थात् इन राशियों मे 1 से 15 अंश तक चंद्रमा  का होरा होगा और 16 से 30 अंश तक सूर्य का होरा होता है ।

                   ।।होरा कुंडली का निर्माण ।।
जन्म पत्रिका के हर कुण्डली का एक लग्न होता है तो इस होरा कुंडली का भी लग्न निर्धारण करना होगा इसके लिये लग्न चक्र से यह देखे की लग्न सम है कि विषम है और कितने अंश पर जन्म है उस जन्म समय किसकी होरा थी वही होरा होरा कुंडली का लग्न होगा ।
उदाहरण के लिये हम यंहा एक ग्रह चक्र दे रहे है इसी से होरा कुंडली बनायेंगे ।
यदि इस चक्र को हम देखे तो सबसे पहले इसमें लग्न राशि अंश लिखा है इस चक्र मे लग्न तुला राशि का 29अंश 46 कला 33 विकला का है ।अर्थात् तुला राशि का प्रथम होरा 15 अंश व्यतीत हो चुका है और दूसरा होरा समाप्त होने वाला है । इसका मतलब है जातक का जन्म तुला लग्न के दूसरे होरा मे हुआ है ।
तुला राशि विषम राशि है अतः प्रथम होरा सूर्य की है और दूसरी होरा चंद्रमा की होती है अतः इस होरा कुंडली का लग्न चंद्र लग्न होगा ।
एक चौकोर चक्र के दो भाग करे प्रथम भाग लग्न होगा दूसरा भाग दूसरी होरा का होगा । प्रथम भाग मे लग्न को लिखे जैसे लग्न चंद्रमा की है तो कर्क लग्न लिखे और दूसरे भाग में सिंह लिखे अगर लग्न सिंह राशि का है तो प्रथम भाग मे सिंह (5)लिखे और दूसरे भाग मे कर्क (4)लिखे । तुला लग्न का दूसरी होरा के अनुसार इस होरा कुंडली का लग्न चंद्र लग्न है ।
इसी प्रकार सूर्यादि 9 ग्रहो को इस होरा चक्र मे स्थापित करना है जैसे सूर्य कन्या लग्न के 4 अंश पर है अर्थात् प्रथम होरा चंद्रमा की है इसलिये सूर्य को कर्क राशि मे स्थापित करे ।
चंद्रमा कन्या राशि का 15 अंश 59 कला 38 विकला का है अर्थात् 15 अंश व्यतीत हो चुका है और दूसरे होरा मे प्रवेश कर चुका है अतः कन्या राशि की दूसरी होरा सूर्य की है अतः चंद्रमा को सूर्य राशि मे स्थापित करे ।
इसी प्रकार मंगल सिंह राशि का 15 अंश 55 कला का है अतः सिंह राशि री दूसरी होरा चंद्रमा की है इसलिये मंगल को कर्क राशि मे स्थापित करे ।
बुध सिंह राशि का 20 अंश पर है अतः बुध भी कर्क राशि मे जायेगा अतः इसे कर्क राशि मे स्थापित करे ।
गुरू वृहस्पति तुला के प्रथम होरा मे है और तुला विषम राशि है अतः प्रथम होरा सूर्य का होगा अतः गुरू को सिंह राशि मे स्थापित करे ।
शुक्र सिंह राशि के 7 अंश पर है अतः प्रथम होरा होगा सिंह राशि विषम है अतः प्रथम होरा सूर्य का होता है इसलिये शुक्र को सिंह राशि मे स्थापित करेंगे ।
शनि वृश्चिक के 27 अंश पर है अतः दूसरी होरा सिद्ध हो रहा है और वृश्चिक राशि सम है अतः इसकी दूसरी होरा सूर्य की होगी अतः शनि को सिंह राशि मे स्थापित करे ।
इसी प्रकार राहु केतु को भी स्थापित करना चाहिए ।
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