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सूर्योदय से इष्टकाल का निर्धारण ।

जन्म कुण्डली निर्माण मे इष्टकाल और लग्न का बहुत ही महत्व होता है यह आप सब दिनमान से लग्न निकालने की विधि से जान चुके होंगे ।यह इष्टकाल जितना शुद्ध होगा उतना ही शुद्ध लग्न होगा और उतना ही शुद्ध कुण्डली अर्थात् जन्म पत्रिका बनेगी । कहने का मतलब है इष्टकाल जन्म पत्रिका रूपी महल (मकान) का नीव (आधार) है यह आधार जितना मजबूत होगा मकान उतने मजबूत बनेगी इसी प्रकार से इष्टकाल जितना शुद्ध होगा कुण्डली उतनी ही शुद्ध बनेगी । अभी तक आपलोगों ने दिनमान से इष्टकाल निकालने की विधि को जाना है अब हम सूर्योदय से इष्टकाल और लग्न निकालने की विधि लिखेंगे जो दिनमान की विधि से बहुत ही आसान और सरल है इसे हम आसानी से समझ सकते है । जिस प्रकार हम दिनमान से लग्न निकालते है ठीक उसी प्रकार से सूर्योदय से निकालेंगे वैसे दोनो का परिणाम एक समान ही आता है पर कभी कभी एकाध पल का अंतर आ जाता है । सबसे पहले हम पंचांग मे लिखित सूर्योदय को नोट कर ले इस सूर्योदय मे संकेता अनुसार रेलवे अंतर का संस्कार करे ।संस्कार करने के बाद जो समय आयेगा उसको नोट करले तथा जन्म समय मे इस संस्कारित समय को घटा कर शेष को घटी पल बनाले तथा इ

दिनमान से इष्टकाल और लग्न निकालने की विधि ।

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प्रिय पाठक गण जन्म पत्रिका निर्माण मे सबसे पहला कार्य है लग्न का निर्धारण । लग्न निर्धारण जितना शुद्ध होगा कुण्डली उतनी ही शुद्ध बनेगी इसलिए लग्न का निर्धारण बहुत ही महत्वपूर्ण है । लग्न निर्धारण का पहला अंग है इष्टकाल इसी इष्टकाल के आधार पर जन्म पत्रिका या कुण्डली का निर्माण किया जाता है । इष्ट काल निकालने की शास्त्रों मे कइ प्रकार की विधि बताया गया है मगर 2 विधि विशेष प्रचलित है 1- दिनमान से 2- सूर्योदय से हम यंहा दिनमान से इष्टकाल और इष्टकाल से लग्न बनाने अथवा निकालने की विधि बता रहा हूं ।           ।। दिनमान से लग्न निकालने की पद्धति ।। यदि पंचांग की सहायता से जन्म पत्रिका का निर्माण करना हो तो सबसे पहले पंचांग मे लिखा दिनमान नोट करले इसके बाद उक्त दिनमान का आधा करके अर्ध दिनमान या दिनार्ध भी नोट करले इसी प्रकार से 60 मे दिनमान घटा कर रात्रिमान नोट करले और रात्रिमान को आधा करके दिनमान मे जोडकर अर्धरात्रिमान या रात्यर्ध भी नोट करले । यदि जन्म समय दिन के 12 से पहले का हो तो जन्म समय 12 मे घटावे यदि जन्म समय 12 के बाद हो तो जन्म समय को घटी पल बनाकर दिनार्ध मे जोडे । किसी भ

जन्म कुण्डली निर्माण कैसे करे ।

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ज्योतिष रूपी कल्प वृक्ष का मूल ग्रहगणित है सिद्धान्त संहिता और होरा इसकी तीन शाखायें है षोडश वर्ग उसकी सोलह मंजरियाँ है और फलित इस वृक्ष का सुशोभित मीठा फल है । परंतु इस मीठे फल को प्राप्त करने के लिए हमे जन्म पत्रिका का निर्माण करना होगा । आइये जानते है जन्म कुण्डली का निर्माण कैसे होगा । जन्म कुण्डली निर्माण के लिए हमे तीन चीजों की आवश्यकता होती है । 1- जन्म तिथि या जन्म दिनांक 2- जन्म समय और 3- जन्म स्थान ये तीनों जब शुद्ध और सही प्राप्त होगा तो शुद्ध जन्म कुण्डली का निर्माण होगा ।              ।।जन्म तिथि या जन्म दिनांक- ।। पहले के जमाने मे जन्म तारीख तिथि मिति और संवत् मे लिखा जाता था जैसे चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा 2074  आज के समय मे जन्म तारीख या दिनांक मे लिखा जाता है जैसे 29 मार्च 2017 मगर दिनांक बहुत सावधानी से लिखना चाहिये कभी कभी रात के 12 बजे के बाद का दिनांक लिखते समय अक्सर त्रुटि हो जाया करती है । हमारे भारत मे सूर्योदय से सूर्योदय तक एक दिन होता है मगर अंग्रेजी मे रात्रि 12 बजे के बाद दिनांक बदल जाता है इसलिए आजकल यदि 12 बजे रात्रि के बाद जन्म हो तो जन्म समय

भयात भभोग निकालने की विधि ।

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जन्म पत्रिका मे भयात भभोग का बहुत महत्व होता है भयात भभोग इतने उपयोगी होते है कि इसके विना ज्योतिष का कोई भी कार्य सम्पन्न नही हो सकता है अतः ज्योतिष कार्य के लिये भयात भभोग आवश्यक है । भयात  के लिये शास्त्रों मे लिखा है । नक्षत्रारम्भत: स्वेष्टकालं यावद् गतं हि तत् । घटयादिकं भयातं तद भस्य भोगो भभोग:।। वर्तमान नक्षत्र आरंभ से लेकर इष्टकाल पर्यंत जितना समय (घटी पल) व्यतीत हुआ हो वह भयात होता है और नक्षत्र के आरंभ से अंत तक का समय (घटी पल) भभोग कहलाता है । इस प्रकार से पंचांग मे नक्षत्र के घटी पल देखकर सहजता से भयात भभोग बन जाता है । इसे और सहज रूप से समझने के लिये दूसरे सूत्र का प्रयोग करना चाहिए जो बहुत ही सहज है । षष्टया गतर्क्षघट्याद्यं शोध्यं स्वेस्ट घटी युतम । भयातं स्यात् तथा स्वर्क्षघटीयुक्तं भभोगक: ।। गत (वर्तमान से पहला नक्षत्र की पंचांगस्थ घटी को 60 मे घटा कर शेष मे इष्टकाल जोडने से भयात होता है और उसी शेष मे वर्तमान नक्षत्र की पंचांगस्थ घटी पल जोडने से भभोग होता है । नोट- पंचांगर्क्षघटी मानादिष्टकालो$धिकस्तदा ।         तदन्तर भयातं स्याद् भभोग: प