पंच महापुरूष योग ::--(रूचक योग,भद्रयोग,हंसयोग ,मालव्ययोग, शश योग )

जन्म पत्रिका मे सप्तवर्गी चक्र के निर्माण के बाद सबसे पहले पंच महापुरुष योग का ही अध्ययन किया जाता है आजकल इन योगों से संबंधित बहुत से भ्रांतियां देखी और सुनी जा रही है यह बहुत चिंता का विषय है इस तरह से इन योगो का मूल स्वरूप ही नष्ट हो जायेगा अतऐव पंच महापुरुष योग का मूल स्वरूप समाप्त न हो इसी उद्देश्य से यह लेख लिखना आरम्भ किया गया  है ।

 










पंच महापुरुष योग के संबंध मे मानसागरी मे लिखा है । 

ये महापुरुषसंज्ञका: शुभा: पंच्च पूर्वमुनिभि: प्रकीर्तिता: । 

वच्मितान्सरलनिर्मलोक्तिभि:राजयोगविधिदर्शनेछ्या।।

स्वगेहतुन्गाश्रयकेंद्रसंस्थैरूच्चोपगैर्वाचनिसूनुमुख्यै । 

क्रमेण योगारूचकाख्यभद्रहंसाख्यमालव्यशशाभिधाना:।।

इस श्लोक मे एक लाइन बहुत ही विचारणीय है राजयोगविधिदर्शनेछ्या अर्थात इन्ही पंच महापुरुष योगों से राजयोग का दर्शन प्राप्त हो जाता है ।
राजयोगो का तात्पर्य राजा बनना नही अपितु साधन सम्पन्न, प्रतिष्ठा, लोकप्रियता, एवं जनता का नेतृत्व होता है ।
पंच महापुरुष योग ऐसे फल देने मे सक्षम है इसलिये इन पंच महापुरुष योगों का मै वर्णन कर रहा हूं ।
रूचक योग- यह योग मंगल ग्रह से बनता है और यह तभी बनता है जब मंगल अपने उँच्च राशि मकर या स्वराशि (मेष या वृश्चिक) मे स्थित हो कर लग्न से केंद्र स्थान(1,4,7,10)मे बैठा हो ।
रूचक योग का फल- रूचक योग्य मे उत्पन्न जातक दीर्घायु, स्वच्क्ष कान्ति से युक्त, अधिक रक्त व बल वाला, साहस से कार्य सिद्ध हो, सुन्दर भौंह वाला, श्याम केश, सुडौल हांथ- पैर वाला, मन्त्रज्ञ,रंग रक्त श्याम, महा शूरवीर, शत्रुओं को पराजित करने वाला, शंख सदृश सौम्य कंठ वाला, अत्यन्त पराक्रमी, उग्र प्रकृति वाला, मानव भक्त, विप्र व गुरू के सम्मुख विनयी, पतली जांघ एवं जानु वाला शरीर होता है जातक के हांथ पैर मे पाश, वृष, धनुष, शर, चक्र, वीणा का चिंह और विद्या की रेखा होती है । ये रेखायें भाग्यशाली होने का सूचक है ऐसे जातक सीधी अंगुली वाला, समस्त विषयों पर अच्छी सम्मति देने वाला, हजारो मे एक, मध्यम कद, और लम्बे मुख वाला होता है ।
भद्र योग- जन्म पत्रिका मे भद्र योग तब बनता है जब बुध अपने उँच्च राशि कन्या (1से 15अंश तक) मे हो या स्वराशि मिथुन कन्या का होकर केंद्र (1,4,7,10)मे स्थित हो तो यह योग बनता है ।
भद्र योग का फल- भद्र योग मे उत्पन्न जातक का शरीर शार्दूल पक्षी सदृश, चाल हांथी सदृश, पुष्ट वक्ष स्थल, सुडोल मनोहारी दोनो बांह, दोनो बांह के बराबर कद, कामुक, मुलायम रोम (बाल) से युक्त कपोल, विद्वान, कमल सदृश मुलायम हांथ पैर, सत्व गुण वाला, एवं योग का ज्ञाता होता है । उसके हांथ पैरो मे शुभ फलदायी चिंह शंख,तलवार, हांथी, गदा, फूल, बांण, पताका, चक्र, कमल व हल आदि होता है यात्रा काल मे मतवाले हांथियो के मद से भूमि आद्र हो जाए, कुंकुम सदृश शरीर की गंध हो, और सौम्य व सर्वप्रिय वाणी होती है । जातक की दोनो भौंहें सुंदर, बुद्धिमान, शास्त्रज्ञ ,आदरणीय, सांसारिक वस्तुओं का भोग करने वाला, रहस्यमयी (बात छुपाने वाला) धार्मिक, सौभाग्यशाली मस्तक, धैर्यवान, केश काले व घुंघराले होते है ।
इच्छानुकूल कार्य करने वाला, स्वजनो को क्षमा न करने वाला, उसकी सम्पति स्वजनों के अतिरिक्त दूसरे लोग उपयोग मे लाते है ऐसा जातक धनवान होता है और लगभग 80 वर्ष तक जीवन सुखपूर्वक जीता है ।
हंस योग : - जन्म पत्रिका मे हंस योग तब बनता है जब गुरू (वृहस्पति) अपने उँच्च राशि कर्क मे हो या अपने स्वराशि धनु अथवा मीन में स्थित होकर जन्म कुण्डली के केंद्र भाव (1,4,7,10) मे स्थित होता है ।
हंस योग का फल: :-हंस योग मे उत्पन्न जातक का शरीर रक्त वर्ण वाला, उंच्ची नाक, सुंदर पाँव, हंस सदृश शरीर, गौर वर्ण, विशाल मस्तक, लाल नख, हंस सदृश वाणी, श्लेष्म प्रकृति, हांथ पैरो मे शंख, कमल, अंकुश, मछली, माला,घडा आदि के चिंहो से युक्त मधु सदृश, रंग वाली आंखे, और गोलाकार सिर होता है । जातक जलाशय, सरोवर, आदि मे जलक्रिडा करने वाला, अत्यंत कामुक, स्त्रियों से तृप्त न होने वाला, 68 अंगुल के तुल्य कद, एव 60 वर्ष तक सुख पूर्व
 जीवन जीने वाला, गंगा यमुना के मध्य के क्षेत्रो मे रहने वाला और अंत मे वन मे प्राण त्याग करने वाला होता है ऐसा मुनियों का कथन है ।
मालव्य योग- मालव्य योग का निर्माण जन्म कुण्डली मे तब होता है जब शुक्र अपनी उँच्च राशि मे हो या अपने स्वराशि वृष और तुला मे स्थित हो कर जन्म कुण्डली के केंद्र भाव (1,4,7,10) मे होने पर मालव्य योग्य का निर्माण होता है ।
मालव्य योग का फल: :- मालव्य योग मे उत्पन्न जातक के पतले होठ, सम शरीर, शरीर के संध स्थल रक्त वर्ण, कटि प्रदेश दुर्बल ,लम्बी नाक, श्यामल कांति, मनोहर कपोल, तीब्र दृष्टि, एवं चमकीली आंखे, पराक्रमी, उसके हांथ घुटने के नीचे तक लम्बे हो, और 70वर्ष तक राजा जैसा जीवन व्ययतित करने वाला,होता है जातक के मुह की लम्बाई 13 अंगुल दोनो कानो के मध्य 10 अंगुल की चौडाई होती है और जातक पुत्रो के साथ लाट, मालवा, सिंधु देशों मे रहने वाला होता है ।
शश योग- जन्म कुण्डली मे जब शनि ग्रह अपने उँच्च राशि तुला मे हो या स्वराशि मकर कुंभ मे स्थित होकर जन्म कुण्डली के केंद्र भाव (1,4,7,10)  स्थित हो तो शश योग बनता है ।
शश योग का फल- शश योग्य मे उत्पन्न जातक की आकृति छोटी (छोटा मुख और छोटे दांत)  पर्वतवासी, क्रोधी, ठगी करने वाला, शूरवीर वन पर्वत किला एवं नदियो के तटो पर विचरण करने वाला, मेहमानो का सत्कार करने वाला, मध्यम कद, एवं प्रसिद्ध होता है ।
सेना के समूहों को एकत्र करने वाला, असम्बद्ध दांत, धातुज्ञ (धातु का ज्ञाता) चंचल स्वभाव, चंचल आंखे, स्त्रियों मे अनुरक्त, पराये धन का हरण करने वाला, मातृभक्त, सुंदर जांघ, वाला पतली कमर, बुद्धिमान और दूसरे के दोषों को ढूढने मे दक्ष होता है जातक के हांथ पैरो मे पलंग, शंख, वांण,शस्त्र, मृदंग, माला वीणा आदि चिंह होता है 70 वर्ष तक राजा सदृश जीवन भोगता है ऐसा मुनियों का कथन है ।

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