ज्योतिष और संतान योग ::-

प्रिय पाठक गण

शास्त्रों के अनुसार हर मनुष्य जन्म से ही तीन ऋण लेकर पैदा होता है जो निम्न प्रकार से है। 1-देव ऋण,2-ऋषि ऋण, 3-पित्र ऋण । 
इन तीनो का अपना अपना महत्व विशेषता है मगर आज मैं यहां पर पित्र ऋण से सम्बन्धित अपना विचार व्यक्त करना चाहता हूं। 
मनुष्य पित्र ऋण से तभी ऊऋण होता है जब वह संतान उत्पन्न कर लेता है विना संतान के पिंडत्व क्रिया नष्ट हो जाती हैं। यही कारण है कि हर व्यक्ति संतान को प्राप्त करना चाहता है। और यह मनुष्य का जन्म सिद्ध अधिकार है मगर कभी कभी किसी कारण वश संतान सुख से वंचित हो जाता है या संतान सुख प्राप्त करने में बाधा उत्पन्न होने लगता है फिर वह दंपति येन केन प्रकारेण संतान प्राप्त करने का प्रयास करता है डॉक्टर, वैद्य, ओझा,गुनी, ज्योंतिषी आदि के पास जाकर अपनी समस्या का समाधान प्राप्त करना चाहता है।
प्रिय पाठक गण यह कोई नई बात नहीं है पहले भी लोग संतान की समस्या से जूझते आए है आज भी जूझ रहे हैं इतिहास प्रमाण है चक्रवती सम्राट महाराज दशरथ जी संतान प्राप्ती के लिए यज्ञ किए थे तब जाकर उन्हें चार पुत्रों की प्राप्ती हुआ था मगर आज वह युग और समय नही है फिर भी समस्या आज भी ज्यादातर देखने को मिल जाता है।
ज्योतिष की दृष्टि में संतान प्राप्ती में कौन कौन योग सहायक है और कौन से योग बाधा उत्पन्न करती हैं पहले उस पर विचार किया जाएगा फिर अन्य कारणों पर भी विचार व्यक्त किया जाएगा ।
कुण्डली मे संतान प्राप्ती योग ::
संतान प्राप्ती के कुछ विशेष योग निम्नलिखित है ।
लग्न और चंद्रमा से पंचम भाव में शुभ ग्रह शुभ दृष्ट हो तो संतान होता है।
पंचम स्थान या पंचमेश तथा बृहस्पति शुभ ग्रह युक्त या दृष्ट हों तो संतान सुख प्राप्त होता है।
लग्नेश पंचम में हो तो संतान सुख होता है ।
पंचमेश केंद्र या त्रिकोण में हो तो संतान सुख होता है ।
यदि पांचवे का स्वामी और बृहस्पति का संबन्ध हो तो संतान सुख होता है।
यदि पहले का स्वामी पांचवे का स्वामी और बृहस्पति केंद्र या त्रिकोण में हो तो संतान सुख होता है ।

ज्योतिष की दृष्टि में संतानाभाव योग कौन कौन से हैं ।
जन्म कुंडली मे निम्नलिखित पुत्रहीन योग-
1- गुरू राहु से युक्त हो पंचमेश निर्बल हो और लग्नेश मंगल से युक्त हो तो संतनाभाव हो सकता है।
2- लग्न, पंचम, अष्टम और द्वादश भाव मे पाप ग्रह हो तो संतनाभाव हो सकता है। ।
3-प्रथम, सप्तम , नवम, द्वादश, भाव मे पाप ग्रह शत्रु राशिस्थ हो तो संतनाभाव हो सकता है।
4- चंद्रमा पंचम मे हो लग्न, अष्टम, द्वादश स्थान मे पाप ग्रह हो तो संतनाभाव हो सकता है।
5- प्रथम, पंचम, नवम भाव के स्वामी षष्ठ, द्वादश मे शुभ युक्त हो अथवा पंचम मे केतु हो और किसी शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तो संतनाभाव हो सकता है।
6- पंचमेश सूर्य हो तथा पंचम अथवा नवम भाव मे पापयुत पापदृष्ट अथवा पापकर्तरी मे हो तो संतनाभाव हो सकता है।
7- पंचमेश चंद्रमा हो और वह शनि, राहु व मंगल से युक्त हो तो संतनाभाव हो सकता है। 
8- तीन पाप ग्रह पंचम मे हो तो संतनाभाव हो सकता है।
9- पंचम भाव मे सूर्य हो तो संतनाभाव हो सकता है।
10- लग्न मे सूर्य और पंचम मे मंगल हो तो संतनाभाव हो सकता है।
11-पंचम भाव मे गुरू हो और गुरू से पंचम पाप ग्रह हो तो संतनाभाव हो सकता है।
12- शनि व मंगल दोनों नवम तथा दशम भाव मे स्थित हो तो संतनाभाव हो सकता है। ।
13- पंचम सप्तम और नवम भाव के स्वामी निर्बल होकर त्रिक भाव मे हो तो संतनाभाव हो सकता है।
14- पाप ग्रह से युक्त होकर गुरू पंचम या नवम भाव मे हो तो संतनाभाव हो सकता है। ।
15- पंचमेश लग्न अथवा सप्तम मे बलवान षष्ठेश से युक्त हो तो संतनाभाव हो सकता है।
16- कन्या राशि के लग्न मे सूर्य और पंचम भाव मे मंगल हो तो संतनाभाव हो सकता है ।
17- लाभ स्थान मे चंद्रमा और शनि का योग हो तो संतनाभाव हो सकता है।
18- पंचम भाव मे स्थित राहु पर मंगल की दृष्टि हो अथवा मेष, वृश्चिक राशि का राहु पंचम मे हो तो संतनाभाव हो सकता है।
19- पंचम मे स्थित शनि पर चंद्रमा की दृष्टि हो और पंचमेश राहु से युक्त हो तो संतनाभाव हो सकता है।
20- लग्नेश राहु से युक्त हो पंचमेश मंगल युत हो और गुरू राहु से दृष्ट हो तो संतानाभाव होता है ।
नोट- जिन लोगों को संतान प्राप्ति मे दिक्कतें हो रही हो कृपया ये देखे उनके कुंडली मे कहीं संतानाभाव योग तो नही है ।
संतान बाधा कारक योग ::-
कुछ योग ऐसे है जो संतान प्राप्ती में बाधक बनता है जैसे ।
लग्न, चंद्रमा, और बृहस्पति से पंचम स्थान पाप ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो तो संतान सुख प्राप्त करने में बाधा होती है।
लग्न, चंद्रमा और बृहस्पति से पांचवे स्थानो के स्वामी दु:स्थान में हो तो संतान सुख प्राप्त करने में बाधा उत्पन्न होती है।
लग्न, चंद्रमा, और बृहस्पति से पांचवा स्थान पापकर्तरी में हो अर्थात् पांचवा स्थान के आगे पीछे पाप ग्रह हो तो संतान सुख प्राप्त करने में बाधा उत्पन्न होती है।
यदि बिस्टी, चतुष्पाद , नागव, किस्तुघ्न, और सकुन करण हो तो संतान सुख प्राप्त करने में बाधा होती है।
इसके अतिरिक्त चतुर्थी, षष्ठी, अष्टमी, नवमी, द्वादशी, और चतुर्दशी तिथि आए तो शुभ फल नही समझना चाहिए ।
आजकल संतान प्राप्ती में मोटापा भी एक कारण बना हुआ है मोटापे के कारण भी संतान उत्पति में समस्या हो रही है प्रायः मोटे लोगों को यह समस्या हो रही है ।


संतान दोष परिहार ::-
अब कुछ संतान दोष परिहार लिखते हैं ।
बिष्टी, चतुष्पाद, नागव, किश्तुघ्न, या सकुन करण हो तो श्री कृष्ण का पुरुष सूक्त मंत्रो से पूजन करना चाहिए।
यदि षष्ठी तिथि हो तो नागराज, का पूजन करना चाहिए ।
नवमी तिथि हो तो रामायण श्रवण करे अष्टमी हो तो श्रावण व्रत करे चतुर्दशी हो तो भगवान रूद्र की पूजा करे द्वादशी हो तो अन्न दान श्रेयस्कर है अमावस्या या पूर्णिमा हो तो पितरों की तृप्ति करे यदि कृष्ण पक्ष की दशमी एकादशी द्वादशी त्रयोदशी चतुर्दशी या अमावस्या हो तो विशेष यत्न पूर्वक शान्ति कर्म की आवश्यकता है।
इसके अलावा यदि संतानोंत्पति में मोटापा बाधा हो तो आयुर्वेदिक औषधियों द्वारा वजन और मोटापा नियंत्रित करना चाहिए।
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