चलित चक्र और प्रयोग विधि

जन्म पत्रिका मे लग्न के बाद दूसरा स्थान चलित चक्र का आता है फलित ज्योतिष मे कहा गया है ।

विना चलित चक्रेण यथोक्तं भावजं फलम् ।
नारि यौवन सम्प्राप्तं पतिहीना यथा भवेत् ।।
जिस प्रकार से षोडश शृंगार से युक्त भरपुर यौवन को प्राप्त षोडशी पत्नि के विना कोइ मुल्य या कोइ सार्थकता नहीं रह जाती है ठीक उसी प्रकार से षोडश वर्ग के अलंकार से युक्त जन्म पत्रिका का चलित चक्र के विना कोइ सार्थकता नहीं रह पाती है ।
शास्त्रों मे लिखा है ।
भाव प्रवृतौ हि फल प्रवृति: पूर्ण फलं भावसमाकेषु ।
ह्रास: क्रमाद् भावविराम काले फलस्य नाश:कथितौ मुनिन्द्रै:।।
अर्थात् भाव की पुष्टि से ही फलादेश की ओर प्रवृत होना चाहिए ।जिस भाव के अंश पूर्ण हो तो पूर्ण फल उस भाव को मिलेगा भाव के विराम होने पर या ह्रास होने पर उस भाव का फल भी नष्ट हो जाता है ।
भाव और संधि के विचार से ग्रहो को ठीक ठीक स्थिति बताने के लिये ही चलित कुंडली बनाई जाती है भाव और संधि से यह स्पष्ट हो जाता है कि भाव का आरंभ कंहा से है मध्य कंहा है और अंत कंहा है ।

नोट- पिछले पोस्ट मे आपने भाव लग्न निकालने की विधि से भाव लग्न निर्धारित कैसे करते है ये जाना है भाव लग्न निर्धारित होने के बाद ग्रहो को द्वादश भाव मे स्थापित कर दे इसके बाद संधि का निर्माण करे इसका सहज सूत्र बहुत ही सहज है ।
ग्रह लाघव नामक ग्रंथ मे संधि निकालने का विधि लिखा है मगर वह बहुत ही जटिल और अमान्य है । संधि निकालने का सहज और मान्य विधि मै यंहा लिख रहा हूं ।
माना कि हमे 21/11/2017 को दिन 10.00 AM बलिया उत्तर प्रदेश का कुंडली बनाना है इस दिन का हमने लग्न निकाला तो 8/25/04/20 है भाव लग्न निकाला तो 9/25/34/46 आया चूंकि जन्म कुण्डली का निर्माण भाव लग्न से ही करना चाहिए इसलिये चलित कुंडली के लिये संधि भी भाव लग्न से ही बनेगा ।
संधि बनाने का नियम ये है कि भाव आरंभ से 15 अंश की दूरी पर भाव संधि होता है जैसे प्रथम भाव का आरंभ 9/25/34/46 है इसके अंश मे 15 अंश जोडा तो भाव संधि 11/10/34/46 है दूसरे भाव की संधि बनाने के लिये प्रथम भाव के आरंभ मे 1 राशि जोडने से दूसरे भाव का आरंभ होगा जैसे 9/25/34/46 मे 1 राशि जोडा तो दूसरा भाव आरंभ 10/25/34/46 आया और संधि 11/10/34/46 आया इसी प्रकार तीसरे भाव का आरंभ बनाने के लिये 1 राशि जोडने पर भाव आरंभ 11/25/34/46 आया और संधि 12/10/34/46 आया इसी प्रकार 4 भाव का आरंभ 12/25/34/46 और संधि 1/10/34/46 हुआ 5 वे भाव का आरंभ 1/25/34/46 और संधि 2/10/34/46 है इसी प्रकार शेष भावो की संधि बना लेना चाहिये ।

चलित भाव चक्र का लग्न वही होता है जो जन्म कुण्डली का लग्न होता होता है ।
चलित भाव चक्र मे ग्रहो को बैठाने का नियम इस प्रकार है ।
एवं भावफलं  ज्ञातुं भावचक्रं पृथग् लिखेत् ।
संधेरल्पो ग्रह: पूर्व- भावे स्थापत्य$धियो$ग्रिमे ।।
संध्यंशादिसमे संधौ ततो वाच्यं शुभाशुभम् ।
जन्म यात्रा विवाहादि सत्कर्मसु विचक्षणै ।।
इस प्रकार भावो के फल जानने के लिये एक भाव चक्र पृथक लिखना चाहिये । अगर संधि से ग्रह अल्प हो तो पूर्व भाव मे संधि से अधिक हो तो अग्रिम  भाव मे लिखना चाहिये यदि संधि के अंश तुल्य ग्रह के अंश हो तो उसी संधि स्थान मे उस ग्रह को लिखना चाहिये ।
इसे उदाहरण के साथ देखें ।
यह लग्न चक्र और स्पष्ट ग्रह तालिका है इसके माध्यम से हम चलित चक्र बनाना सीखेंगे । सबसे पहले हम लग्न के आरंभ संधि को देखे तो 9/25 /34/46 है जन्म कुण्डली के लग्न भाव मे केतु स्थित है अतः केतु के  लिये संधि आरंभ 9/25/34/42 है स्पष्ट ग्रह तालिका मे केतु के राशि अंश को देखा तो 9/24/57/15 है जो संधि आरंभ के समानही माना जायेगा इसलिए केतु लग्न मे ही रहेगा । 2,3,4,5,6,भाव रिक्त है सातवें भाव मे राहु है सातवें भाव का संधि आरंभ 3/25/34/46 है और राहु का राशि अंश 3/24/57/15 है अतः ये भी लगभग बराबर ही है अतः राहु उसी भाव मे रहेगा ।आठवां भाव रिक्त है नवें भाव मे मंगल है जिसका संधि आरंभ 5/25/34/46 है और मंगल का स्पष्ट राशि अंश 5/24/27/24 है अतः यह भी लगभग समान ही है अतः मंगल भी चलित कुंडली मे उसी भाव अर्थात् नवम भाव अर्थात् कन्या राशि मे ही रहेगा दशम भाव का संधि आरंभ 6/25/34/46 है और गुरू का राशि अंश 6/14/54/56 है जो भाव आरंभ से कम है अल्प है अतः सूत्रानूसार गुरू नवम भाव मे चला जायेगा शुक्र का राशि अंश समान होने से दशम मे ही रहेगा इसी प्रकार एकादश भाव का आरंभ 7/25/34/46 है एकादश भाव मे सूर्य बुध है सूर्य का राशि अंश संधि आरंभ से कम है अतः सूर्य दशम भाव पर आ जायेगा बुध का राशि अंश संधि के अंश मे है इसलिए बुध एकादश भाव मे ही रहेगा द्वादश भाव मे चंद्रमा शनि है और दोनो के राशि अंश संधि आरंभ से कम है अतः चंद्रमा शनि दोनो ग्रह एकादश भाव मे आ जायेगा इस प्रकार चलित चक्र का निर्माण करना चाहिए ।

।।अथोभयकुंडलीनां प्रयोजम् ।।
राशि चक्राच्च खेटानां नित्यं स्थानादिजं बलम् ।
सूर्यादि वेशिमुखा योगाश्चन्द्राच्च सुनफादय:    ।।
संख्याश्रयादिका योगा विचिन्त्या दैवचिन्तकै:    ।
ग्रह योग फलं तद्वत फलं खेटर्क्षयोगम्।            ।
किंतु-केंद्र त्रिकोणादि- संज्ञा चक्रद्वयादपि।       ।।
अर्थात् लग्न राशि चक्र मे स्थित ग्रहो के उंच्च-गृह नीच मित्र गृह आदि तथा सूर्य से वेशि वोशि आदि एवं चंद्रमा से अनफा सुनफादि योग तथा संख्या आश्रय और नाभस आदि योग द्विग्रह आदि योग ग्रह राशि योग आदि का विचार लग्न राशि चक्र से ही करना चाहिए किंतु भाव या ग्रह से केंद्र त्रिकोण आदि संज्ञा दोनो ही चक्र मे समझना चाहिए ।
लग्नात् भावफलम् यद् यद् ग्रहयोगात् प्रकीर्तितम् ।
तत् तत् शुभाशुभं सर्व भावचक्राद् विचिन्तयेत् ।  ।।
खेटे भावसमे पूर्णं शून्यं सन्धिसमे स्मृतम्।           ।
फलं तद्भावखेटोत्थं ज्ञेयं मध्ये-$अनुपात:          ।।
लग्न से तनु आदि भावो से ग्रह योग संबंधी जो फल कहे गये हैं उनको भाव चक्र से समझना चाहिए भाव के अंशादि तुल्य होतो पूर्ण फल और सन्धि के अंशादि तुल्य हो तो शून्य फल एवं सन्धि और भाव के बीच मे हो तो अनुपात से फल समझना चाहिए ।
नोट- अनुपात यह है कि संधि से 15 अंश अंतर पर भाव तुल्य होने पर पूर्ण फल तो इष्ट सन्धि ग्रहांतर मे क्या ।    इस त्रैराशिक से लब्धि भाव फल          =60÷15=4
सन्धि ग्रहान्तरांशाद्यं वेदै:क्षुण्णं कलादिकम्।    
फलं तद्भावखेटोत्थं विज्ञेयं दैवचिन्तकै:       ।।
सन्धि ग्रहांतरांश संख्या को 4 से गुणा करने से भावफल का मान होता है।                                                     

अभी तक जो वर्णन किया गया है वह ग्रह और संधि तक का वर्णन है यदि ग्रह भाव से अल्प हो तो इसका तात्पर्य है ग्रह पिछले भाव का फल दे रहा है और ग्रह यदि संधि से भी अधिक हो तो इसका तात्पर्य है ग्रह अगले भाव का फल दे रहा है  इस प्रकार विचार कर चलित भाव चक्र का प्रयोग करना चाहिए ।                                                          






टिप्पणियाँ

Manish dubey ने कहा…
किसी भाव की आरंभ संधि से कम अंश,कला,विकला पर रहने वाला ग्रह पिछले भाव का फल देता है आपने यह कहा यहां, लेकिन सवाल यहां उदाहरण स्वरूप यह है कि यदि नवम भाव की संधि आरंभ संधि 4/11/26/20 है और गुरू का राशि अंश 4/11/7/47, मंगल का राशि अंश 4/10/26/45, चंद्रमा का राशि अंश 4/6/40/53, राहू का राशि अंश 4/5/14/30 है जो भाव आरंभ से कम अल्प होने से अष्टम भाव में चले गये यह ग्रह.
लेकिन मूलभूत प्रश्न यहां यह खडा होता है कि अष्टम भाव की विराम(अंत संधि) 4/11/26/20 है यहां. ऐसे में आपसे सवाल है यहां कि अष्टम भाव की विराम संधि के लगभग पास यहां गुरु और मंगल अष्टम भाव का कितने प्रतिशत फल देगा वही राहू और चंद्रमा अष्टम भाव का कितना फल प्रतिशत रहेगा , आपने अनुपात करने को कहा वह समझ नहीं आया यहां . वही ? यह ग्रह जन्म कुण्डली के नवम भाव का कुछ भी फल नहीं करेंगे ? फलदीपिका में तो अलग मत है कि फल प्रतिशत दोनो भाव में रहेगा कही अधिक और कहीं कम. कृपया कर पं. अरविन्द जी स्पष्ट करे.
Unknown ने कहा…
बहुत सुंदर विधि से समझाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
Arvind kumar Tiwari ने कहा…
Manish Duby जी आपने बड़ा सुन्दर प्रश्न किया है मई काफी दिनों से व्यस्त होने के कारण पोस्ट नहीं देख सका था इसलिए मै आपके प्रश्न का जवाब नहीं दे पाया था आज मैंने आपका कमेन्ट देखा हूँ इसलिए इसका जवाब दे रहा हूँ |
मनीष जी आप प्रश्न के जवाब में मै इस सूत्र के तरफ आपका ध्यानाकर्षण करना चाहूंगा |
सन्धि ग्रहांतरांश अद्यम वेदैाः क्षुड़ं कलादिकम , फलं तद्भाव खेटोंथं विज्ञेयं दैव चिन्तकैः ||
अर्थात सन्धि ग्रहांतरांस संख्या को 4 से गुणा करने से भावफल का मान होता है यदि गुणनफल ४० से ऊपर तो पूर्ण फल २० से ४० तक माध्यम और २० से अल्प होने पर शून्य फल होता है |
जैसे आपने लिखा है की नवम भाव का आरम्भ संधि ४ /११/२६ /२० है अंत संधि ४/२६/२६/२० होगा अब सूत्रानुसार अंत संधि में ग्रह मान४/११/७/४७ को घटाएंगे १५/१८/३३ आएगा अब हम अंश को ४ से गुणा करेंगे तो ६० आया यह ४० से अधिक है इसलिए नवम भाव का पूर्ण फल देगा अष्टम का फल नहीं देगा |
Arvind kumar Tiwari ने कहा…
अष्टम भाव का फल क्यों नहीं देगा यह जानने के लिए आपको आरम्भ संधि से ग्रह मान को घटाना होगा जैसे ४ /११ /२६ /२० आरम्भ संधि है इसमें ग्रह मान ४ /११/ ७/ ४७ घटाया तो १८ कला ३३ विकला आया इसमें ४ से गुणा करने पर गुणनफल ७४ कला १० विकला आया चूँकि विकला ६० से अधिक है इसलिए ग्रह अष्टम का नहीं नवम का फल देगा |
दोनों ही प्रकार से नवम का मान सिद्ध हो रहा है ऐसे ही आप सर्वत्र समझेंगे |
Manish dubey ने कहा…
पंडित जी जय श्री कृष्ण। आपने सविस्तार से मुझे यहां समझाया। धन्यवाद सहित आशा करता हूँ आगे भी आपकी कृपा बनी रहेगी मुझ पर। और कोई भी ज्योतिष शास्त्र से जुड़े किसी सिद्धांत पर कोई प्रश्न या जिज्ञासा आती है मुझे तो उसके लिए आपसे निवेदन करूंगा। कृपया आप ईमेल पता भी बता दें।
Manish dubey ने कहा…
पंडित जी जय श्री कृष्ण। यदि ऊपर मेरे किये गये प्रश्न मे गुरु नवम भाव में सिंह राशि में 11° 07'42" का है और नवम भाव का आरंभ सिंह राशि के 15°59' हो व भाव भाव अंत कन्या राशि के 14°59" पर है तब भी क्या गुरु ग्रह नवम भाव का ही स्पष्ट रूप से फल प्रदान करेगा।?
Arvind kumar Tiwari ने कहा…
मनीष जी आप अपना जन्म विवरण दे या ग्रह स्पष्ट तालिका दे फिर मै सब स्पस्ट कर दूंगा और आपको समझ में बी आ जायेगा
मेरा E mail id- tiwari.arvind201@gmail.com hai
Arvind kumar Tiwari ने कहा…
मेरा संपर्क सूत्र
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Manish dubey ने कहा…
पंडित जी आपकी ईमेल आईडी पर भेजा है जन्म विवरण।
Manish dubey ने कहा…
अभी भेजा है ईमेल आपको। कृपया मुझे अवश्य इस विषय को स्पष्टता से समझने में मदद करें।

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