योग कैसे बदलते है ।

प्रिय पाठक गण
                     भारतीय ज्योतिष के अंतर्गत काल के पांच प्रमुख अंग वार, तिथि, नक्षत्र, योग और करण माने गये हैं जिसमे आज हम योग कैसे बदलते है ये बतायेंगे । योग शब्द का तात्पर्य काल के दो अंगों का जोड है 2 भाग को जोडना ही योग है ।
योग दो प्रकार का होता है पहला आनंन्दादि 28 योग जो वार और नक्षत्र के संयोग से बनता है । 27 नक्षत्र तो होते ही है मगर योग मे नक्षत्रों की संख्या 28 हो जाता है और इसमें अभिजित नक्षत्र और जुड जाता हैं जिससे इसकी संख्या 28 हो जाता है ।
यह योग वार और नक्षत्र के संयोग से बनता है जैसे रविवार हो और अश्विनी नक्षत्र हो तो आनन्द योग होता है ।
इसी प्रकार सोम +मृगशिरा एवं मंगलवार + आश्लेषा और बुधवार +हस्त गुरूवार +अनुराधा शुक्रवार +उत्तराषाढ़ा तथा शनिवार +शतभिषा के संयोग से बनता है । इन्हीं वारो के साथ इनसे अगले नक्षत्रों को मिलाने से अगला योग बनता है । यह योग सूर्योदय से सूर्योदय तक रहता है इसमें कोई बदलाव नही होता है ।इनमें आनन्द, घाता, सौम्य, केतु ,श्रीवत्स ,छत्र ,मित्र, मानस ,सिद्धि, शुभ ,अमृत ,मातेग ,सुस्थिर ,प्रवर्धमान शुभ है और धूम्र योग की प्रथम 1 घटी काण और मुसल योग की प्रथम 2 घटी पदम और लुम्ब योग की प्रथम 4 घटी ध्वांश, बज्र, मुद्गर योग की प्रथम 5 घटी गदयोग की प्रथम 7 घटी तथा चर, कालदंड, उत्पात, तथा रक्ष योग सर्वथा वर्जित है ।
दूसरा योग है विष्कुंभादि योग जो सूर्य तथा चंद्रमा के राश्यंशो के संयोग से बनता है । इन योगो की संख्या 27 है इसमें अभिजित की गणना नहीं होती है ।
जिस प्रकार तिथि का निर्धारण चंद्र और सूर्य के राश्यंतर व गत्यांतर के आधार पर होता है एवं नक्षत्र का विचार केवल चंद्र राश्यंश व गति से होता है उसी प्रकार इन योगो का निर्धारण चंद्रमा व सूर्य के राश्यंश के योग और दोनो के गति के योग के आधार पर होता है । जिस प्रकार चंद्रमा के राश्यंश के आधार पर 13 अंश 20 कला के एक भाग को एक नक्षत्र कहते है ।उसी प्रकार सूर्य और चंद्र के राश्यंश के योग के आधार पर एक योग का मान भी 13अंश 20 कला है ।
इस प्रकार से विषकुंभ योग का कोणात्मक मान 13 अंश 20 कला है प्रीति योग का मान 26 अंश 40 कला है आयुष्मान का मान 1 राशि 10 अंश अर्थात् 40 अंश है इसी प्रकार बढते बढते वैधिृत का कोणात्मक मान 12 राशि है अर्थात्। 00.00.00.00 है ।
इसको ऐसे समझ सकते है जिस योग को जानना है उसके संख्या मे 13 अंश 20 कला से गुणा कर देना है जैसे वैधिृत की संख्या 27 है इसमें 13.20 से गुणा करने पर 360 अंश अर्थात् 12 राशि आ जायेगा ।
इस प्रकार 27 योगो का कोणात्मक मान लिख के रख लेना चाहिए ।


अब किसी भी दिनांक का योग और उसका समाप्ति काल ग्यात करते है । आइये उदाहरण सहित समझते है ।
माना कि हमे दिनांक 20/3/2016 को वाराणसी मे योग तथा उसके समाप्ति समय ग्यांत करना है ।
इसके लिए सबसे पहले हम 20/3/2016 का प्रातः 5.30 का स्पष्ट सूर्य और चंद्र को ग्यात करना है किसी भी पंचांग मे सूर्य का स्पष्ट मान प्रातः का ही होता है उससे उसकी राशि अंश कला विकला नोट करे ।
फिर उसी दिनांक का प्रातः 5.30 का चंद्र स्पष्ट गंयात करे बहुत पंचांगो मे चंद्र स्पष्ट लिखा होता है और बहुत पंचांगो मे नही लिखा होता है जैसे हमारे काशी के पंचांगो मे चंद्र स्पष्ट  नही लिखा जाता है ।अगर न लिखा हो तो भयात भभोग के द्वारा चंद्र स्पष्ट निकाल लेना चाहिए ।
नोट- भयात भभोग के द्वारा चंद्र स्पष्ट निकालने कि विधि ब्लाग के पोस्ट मे आपको मिल जायेगा ।
सूर्य स्पष्ट और चंद्र स्पष्ट निकालने के बाद दोनो को जोड दे जैसे हमने 20/3/2016 का सूर्य स्पष्ट 11.05.43.50 निकाला है इसी प्रकार चंद्र स्पष्ट 3.26.52.36 निकाला है । दोनो को जोडा (योग) तो 15.02.36.26 आया चूंकि राशि की संख्या 12 ही होता है और  यंहा 15 है इसलिये हमने 15 मे 12 घटाया तो 3.02.36.26 आया ।
योग के कोणात्मक मान देखा तो सुकर्मा योग का कोणात्मक मान 3.30.20.16 से कम 3.02.36.26 दिखा इसका मतलब है की 20/3/2016 को सुकर्मा योग था जो 3.30.20.16 पर समाप्त होगा । यह समाप्ति समय निकालने के लिये हमे चंद्र की 12 घंटे की गति निकालना होगा ।
इसके लिए जिस विधि से प्रातः का चंद्र स्पष्ट निकाला गया है उसी विधि से सायं 5.30 का चंद्र स्पष्ट निकाले और प्रातः का चंद्र स्पष्ट घटा दे तो चंद्रमा की 12 घंटे की गति निकल आयेगा ।
जैसे 4.03.01.58 सायं के चंद्र स्पष्ट मे 3.26.52.36 प्रातः का चंद्र स्पष्ट घटाया तो 0.06.09.22 आया ।
इसी प्रकार सूर्य के 12 घंटे की गति निकाले इसके लिये अगले दिन के सूर्य स्पष्ट मे उक्त दिनांक का सूर्य स्पष्ट घटाया जाता है फिर 2 से भाग देकर 12 घंटा का गति निकाला जाता है ।
जैसे 21/3/2016 के प्रातः सूर्य स्पष्ट 11.06.43.25 मे 20/3/2016 के प्रातः का सूर्य स्पष्ट 11.05.43.50 घटाया तो 59.35 आया इसमें 2 से भाग दिया तो 12 घंटे की गति 29. 47 आया ।
अब सूर्य चंद्र के 12 घंटा की गति जोड दिया तो 0.06.39.09 आया इसको त्रैराशिक विधि से गणित किया तो 12 ×सुकर्मा योग के कोणात्मक मान मे सूर्य चंद्रमा के जोड घटाया गया मान ÷चंद्र सूर्य की गति का जोड ।
जैसे- 12 ×43/50 ÷6/39/9 अर्थात् 12×2630 ÷23949 अथवा 31560 ÷23949 =1 घंटा 19 मिनट आया ।
इसको प्रातः 5.30 मे जोडा जैसे 5.30+1.19=6.49 आया । यह 6.49 सुकर्मा योग का समाप्ति समय है । इसको वाराणसी के घटी पल मे लिखने के लिये 6.49 मे वाराणसी का सूर्योदय 6.03 घटाया तो 46 मिनट शेष आया इसको 2.50 से गुणा किया या 5 से गुणा कर 2 से भाग दिया तो 1 घटी 55 पल आया इसका मतलब है वाराणसी मे सूर्योदय से 1 घटी 55 पल वितने पर सुकर्मा योग समाप्त होगा ।
रेलवे घडी के अनुसार प्रातः 6.49 पर सुकर्मा योग समाप्त होगा ।
योगो की शुभाशुभता-
प्रीति ,आयुष्मान ,शोभन ,सुकर्मा ,वृद्धि ,ध्रुव ,हर्षण ,सिद्धि ,शिव ,साध्य ,शुभ ,शुक्ल ,ब्रह्म व इन्द्र योग शुभ होते है ।तथा व्यतिपात ,वैधिृत योग शुभ कार्यों के लिये वर्जित होता है इसके अलावा विषकुंभ की प्रथम 3 घटी वज्र की प्रथम 4 घटी व्याघात की प्रथम 5 घटी गण्ड व अतिगण्ड की प्रथम 6 घटी शूल योग की प्रथम 15 घटी और परिधि योग का आधा भाग (2 चरण) शुभ कार्यों के लिये वर्जित है ।
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यह लेख आपको कैसा लगा बताने की कृपा जरूर करेंगे हम आपके उतर की प्रतिक्षा करेंगे ।


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