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भाव लग्न का महत्व और निकालने की विधि ।

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           ।। लग्न परिचय और निर्धारण  ।।        तात्कालार्क: सायन: स्वोदघ्ना: भोग्यांशा: खत्र्युद्घृता भोग्यकाल: । एवं यातांशैर्भवेद्याताकालो भोग्य: शोध्य$भीष्टनाडीपलेभ्य: ।। तदनु जहीह गृहदयांश्च शेषं गगनगुणघ्नभशुद्धहल्लवाद्यम । सहितमजादिगृहैशुद्धपूर्वैर्भवति विलग्नमदो$यनांश हीनम् ।। जिस दिन का और जिस समय का लग्न निर्धारण करना है उस दिन का इष्टकाल, अयनांश, और स्पष्ट सूर्य को नोट कर लेना चाहिये । इष्टकालिक स्पष्ट सूर्य मे अयनांश जोडकर सायन सूर्य बना लेना चाहिये । अयनांश कैसे निकालते है इसका विवरण अलग से दिया गया है पाठक गण इसी ब्लाग मे अयनांश साधन की रीति नामक पोस्ट पढ सकते है । सायन सूर्य के अंशों को 30 मे घटाकर भोग्यांश निकालकर नोट कर लेना चाहिये । इस भोग्यांश मे स्वोदय मान से गुणा कर 30 से भाग देने पर लब्धि पलादि भोग्य काल होता है । इस पलादि भोग्य काल को प्लात्मक इष्टकाल मे घटाकर शेष को सायन सूर्य की अग्रिम राशि के स्वोदय मान क्रम से घटाना चाहिए जितनी राशियों के स्वोदय मान घट जाये वो शुद्ध राशि और जो न घटे वह अशुद्ध राशि होता है । फिर शेष को 30 से गुणा करके अशुद्ध राशि

सूर्योदय से इष्टकाल का निर्धारण ।

जन्म कुण्डली निर्माण मे इष्टकाल और लग्न का बहुत ही महत्व होता है यह आप सब दिनमान से लग्न निकालने की विधि से जान चुके होंगे ।यह इष्टकाल जितना शुद्ध होगा उतना ही शुद्ध लग्न होगा और उतना ही शुद्ध कुण्डली अर्थात् जन्म पत्रिका बनेगी । कहने का मतलब है इष्टकाल जन्म पत्रिका रूपी महल (मकान) का नीव (आधार) है यह आधार जितना मजबूत होगा मकान उतने मजबूत बनेगी इसी प्रकार से इष्टकाल जितना शुद्ध होगा कुण्डली उतनी ही शुद्ध बनेगी । अभी तक आपलोगों ने दिनमान से इष्टकाल निकालने की विधि को जाना है अब हम सूर्योदय से इष्टकाल और लग्न निकालने की विधि लिखेंगे जो दिनमान की विधि से बहुत ही आसान और सरल है इसे हम आसानी से समझ सकते है । जिस प्रकार हम दिनमान से लग्न निकालते है ठीक उसी प्रकार से सूर्योदय से निकालेंगे वैसे दोनो का परिणाम एक समान ही आता है पर कभी कभी एकाध पल का अंतर आ जाता है । सबसे पहले हम पंचांग मे लिखित सूर्योदय को नोट कर ले इस सूर्योदय मे संकेता अनुसार रेलवे अंतर का संस्कार करे ।संस्कार करने के बाद जो समय आयेगा उसको नोट करले तथा जन्म समय मे इस संस्कारित समय को घटा कर शेष को घटी पल बनाले तथा इ

दिनमान से इष्टकाल और लग्न निकालने की विधि ।

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प्रिय पाठक गण जन्म पत्रिका निर्माण मे सबसे पहला कार्य है लग्न का निर्धारण । लग्न निर्धारण जितना शुद्ध होगा कुण्डली उतनी ही शुद्ध बनेगी इसलिए लग्न का निर्धारण बहुत ही महत्वपूर्ण है । लग्न निर्धारण का पहला अंग है इष्टकाल इसी इष्टकाल के आधार पर जन्म पत्रिका या कुण्डली का निर्माण किया जाता है । इष्ट काल निकालने की शास्त्रों मे कइ प्रकार की विधि बताया गया है मगर 2 विधि विशेष प्रचलित है 1- दिनमान से 2- सूर्योदय से हम यंहा दिनमान से इष्टकाल और इष्टकाल से लग्न बनाने अथवा निकालने की विधि बता रहा हूं ।           ।। दिनमान से लग्न निकालने की पद्धति ।। यदि पंचांग की सहायता से जन्म पत्रिका का निर्माण करना हो तो सबसे पहले पंचांग मे लिखा दिनमान नोट करले इसके बाद उक्त दिनमान का आधा करके अर्ध दिनमान या दिनार्ध भी नोट करले इसी प्रकार से 60 मे दिनमान घटा कर रात्रिमान नोट करले और रात्रिमान को आधा करके दिनमान मे जोडकर अर्धरात्रिमान या रात्यर्ध भी नोट करले । यदि जन्म समय दिन के 12 से पहले का हो तो जन्म समय 12 मे घटावे यदि जन्म समय 12 के बाद हो तो जन्म समय को घटी पल बनाकर दिनार्ध मे जोडे । किसी भ

जन्म कुण्डली निर्माण कैसे करे ।

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ज्योतिष रूपी कल्प वृक्ष का मूल ग्रहगणित है सिद्धान्त संहिता और होरा इसकी तीन शाखायें है षोडश वर्ग उसकी सोलह मंजरियाँ है और फलित इस वृक्ष का सुशोभित मीठा फल है । परंतु इस मीठे फल को प्राप्त करने के लिए हमे जन्म पत्रिका का निर्माण करना होगा । आइये जानते है जन्म कुण्डली का निर्माण कैसे होगा । जन्म कुण्डली निर्माण के लिए हमे तीन चीजों की आवश्यकता होती है । 1- जन्म तिथि या जन्म दिनांक 2- जन्म समय और 3- जन्म स्थान ये तीनों जब शुद्ध और सही प्राप्त होगा तो शुद्ध जन्म कुण्डली का निर्माण होगा ।              ।।जन्म तिथि या जन्म दिनांक- ।। पहले के जमाने मे जन्म तारीख तिथि मिति और संवत् मे लिखा जाता था जैसे चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा 2074  आज के समय मे जन्म तारीख या दिनांक मे लिखा जाता है जैसे 29 मार्च 2017 मगर दिनांक बहुत सावधानी से लिखना चाहिये कभी कभी रात के 12 बजे के बाद का दिनांक लिखते समय अक्सर त्रुटि हो जाया करती है । हमारे भारत मे सूर्योदय से सूर्योदय तक एक दिन होता है मगर अंग्रेजी मे रात्रि 12 बजे के बाद दिनांक बदल जाता है इसलिए आजकल यदि 12 बजे रात्रि के बाद जन्म हो तो जन्म समय

भयात भभोग निकालने की विधि ।

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जन्म पत्रिका मे भयात भभोग का बहुत महत्व होता है भयात भभोग इतने उपयोगी होते है कि इसके विना ज्योतिष का कोई भी कार्य सम्पन्न नही हो सकता है अतः ज्योतिष कार्य के लिये भयात भभोग आवश्यक है । भयात  के लिये शास्त्रों मे लिखा है । नक्षत्रारम्भत: स्वेष्टकालं यावद् गतं हि तत् । घटयादिकं भयातं तद भस्य भोगो भभोग:।। वर्तमान नक्षत्र आरंभ से लेकर इष्टकाल पर्यंत जितना समय (घटी पल) व्यतीत हुआ हो वह भयात होता है और नक्षत्र के आरंभ से अंत तक का समय (घटी पल) भभोग कहलाता है । इस प्रकार से पंचांग मे नक्षत्र के घटी पल देखकर सहजता से भयात भभोग बन जाता है । इसे और सहज रूप से समझने के लिये दूसरे सूत्र का प्रयोग करना चाहिए जो बहुत ही सहज है । षष्टया गतर्क्षघट्याद्यं शोध्यं स्वेस्ट घटी युतम । भयातं स्यात् तथा स्वर्क्षघटीयुक्तं भभोगक: ।। गत (वर्तमान से पहला नक्षत्र की पंचांगस्थ घटी को 60 मे घटा कर शेष मे इष्टकाल जोडने से भयात होता है और उसी शेष मे वर्तमान नक्षत्र की पंचांगस्थ घटी पल जोडने से भभोग होता है । नोट- पंचांगर्क्षघटी मानादिष्टकालो$धिकस्तदा ।         तदन्तर भयातं स्याद् भभोग: प

सर्व कार्य सिद्धि होरा मुहूर्त

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प्रिय पाठक गण- -                     भारतीय ज्योतिष के 3 अंग गणित सिद्धान्त और होरा है ।और जिस प्रकार से जातक ग्रंथों मे होरा का महत्व है उसी प्रकार मुहूर्त मे भी होरा का महत्व है होरा मुहूर्त अपने आप मे सिद्ध मुहूर्त होता है । मानव के जीवन मे कुछ समय ऐसा भी आता है की न चाहते हुये भी कार्य करना पडता है जैसे यात्रा पूर्व निर्धारित तिथि पर भी होता है और अचानक भी ठीक इसी प्रकार बहुत सारे कार्य हमे अचानक करना पड जाता है । अचानक यात्रा करनी है मगर दिशा शूल है अतः या तो हम न जाये या दिशा शूल मे यात्रा करे ।ऐसे ही परिस्थितियों का आकलन करके मनीषियों ने होरा मुहूर्त का निर्धारण किया ताकी कोई कार्य अचानक करना पड जाये तो हम होरा मुहूर्त के माध्यम से कार्य करले और हमे कार्य की सिद्धि प्राप्त हो जाये । होरा मुहूर्त के संबंध मे शास्त्रों मे लिखा है । कालहोरेति विख्यातं सौम्ये सौम्यफलप्रदा । सूर्य शुक्र बुधाश्चंद्रो मंदजीवकुंजा: क्रमात् ।। होरा मुहूर्त पूर्ण फलदायक और अचूक होता है । आइये जानते है यह मुहूर्त कैसे बनता है । आप सभी जानते है सूर्योदय से सूर्योदय तक का 1 अहोरात्र होता है और 1 अहो

विशेष महत्वपूर्ण मुहूर्त ।

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प्रिय पाठक गण--                   भारतीय ज्योतिष मे मुहूर्त का विशेष महत्व है हम कोई भी कार्य करना चाहते है तो अच्छे मुहूर्त मे ही करना चाहते है यात्रा हो विवाह उपनयन या पुजा पाठ अथवा कोई भी शुभ कार्य करने के पहले हमे मुहूर्त की आवश्यकता होती है । आइये सबसे पहले हम जानते है कि मुहूर्त क्या है हमारे यंहा समय की गणना के लिये बहुत सी पद्धतियाँ है और हम सूक्ष्म से सूक्ष्म गणित इन्हीं पद्धतियों के माध्यम से करते है इन्हीं पद्धतियों मे एक पद्धति है मुहूर्त इस मुहूर्त के पद्धति से हम शुभ समय निकालते है जिसमें हम शुभ कार्य आरंभ करते है । 1 मुहूर्त का समय 2 घटी अर्थात् 48 मिनट होता है । और इस प्रकार हमारे 1 दिनमान मे 16 मुहूर्त निवास करता है । पंच्चांग देखने की विधि जानने के लिये यहां क्लिक करे ये हमने संक्षिप्त मे मुहूर्त का परिचय बताया है । आप सभी जानते है कि हमारे जीवन मे मुहूर्त का क्या महत्व है और उसकी क्या उपयोगिता है ये बताने की आवश्यकता नहीं है । उपनयन, विवाह, गृह प्रवेश, गृहारंभ, देव प्राण प्रतिष्ठा आदि बहुत से कार्य ऐसे है जिनके लिए हम पहले मुहूर्त का निर्धारण करते है फिर

करण कैसे बदलते है ।

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प्रिय पाठक गण- -                      भारतीय ज्योतिष मे काल के अंग के रूप मे करण का भी महत्व है । एक तिथि मे 2 करण होते है । तिथि के आधे भाग को करण कहा जाता है ।सूर्य से चंद्रमा की की प्रति 6 अंश की दुरी पर एक करण होता है और 12 अंश पर 1 तिथि होता है ।इस प्रकार 1 मास मे 60 करण होते है मुख्य 7 करण है जो चर करण कहलाते है 1 माह मे इन 7 करणो की (प्रत्येक करण की) आठ (8)आवृति होती है बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज, एवं विष्टि इनका नाम है ये चर करण कहलाते है । इसके अलावा 4 करण और होते है जो स्थिर करण कहलाते है ये कभी बदलते नहीं है शकुन, चतुष्पाद, नाग, और किस्तुघ्र इनका नाम है इन चारो कि तिथि हमेशा एक ही होती है जैसे कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के उत्तराध्र मे शकुन, अमावस्या के पूर्वार्ध मे चतुष्पाद, और उतराध्र मे नाग तथा शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के पूर्वार्ध मे किंस्तुघ्र करण होता है । पंच्चांग देखने की विधि जानने के लिये यहां क्लिक करे करण तथा करण का समाप्ति समय निकालने की विधि- किसी भी दिनांक का करण निकालने का सूत्र इस प्रकार है । जिस तिथि का करण ग्यांत करना हो (4 स्थिर करणो को छोडकर) उस तिथि क