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त्रिशांश कुंडली बनाने की विधि एवं फलित विचार

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प्रिय पाठक गण :: --                  त्रिशांश कुण्डली का  निर्माण सप्तवर्गी कुण्डली में बहुत ही महत्वपूर्ण है । शास्त्रो मे लिखा है । कुजशनिजीवज्ञसिता: पन्चेन्द्रियवसुमुनीन्द्रियाशानाम् । विषमेषु समर्क्षेषूत्क्रमेण त्रिशांशपा: कल्प्या:।। त्रिशांश राशि का तीसवां भाग होता है अर्थात प्रत्ये क भाग 1 अंश का होता है । त्रिशांश कुण्डली बनाने के लिये हमे ग्रह स्पस्ट की आवश्यकता होती है जो आपके द्वारा निकाला जाता है । ग्रह स्पष्ट करने की सरल विधि जानने के लिये यंहा क्लिक करे। मै यहां एक काल्पनिक ग्रह स्पष्ट की फोटो डाल रहा हूं उदाहरण के लिये पाठक गण देख सकते है  । त्रिशांश कुण्डली बनाने के लिये हमे सम विषम पर विशेष ध्यान देना पडता है । विषम राशियों मे प्रथम 5 अंश तक मंगल की मेष राशि होती है  इसके बाद अर्थात् 5 से 10 अंश तक शनि की कुंभ राशि होतीहै इसके बाद 10 अंश से 18 अंश तक गुरू की धनु राशि होती है और 18 अंश सेलिंग 25 अंश तक बुध की मिथुन राशि और 25 से 30 अंश तक शुक्र की तुला राशि होता है । वही सम राशि मे प्रथम 5 अंश तक शुक्र की वृष राशि 5से 12 अंश तक बुध की कन्या राशि तथा 12 अंश से 20 अंश तक

द्वादशांश कुंडली बनाने की विधि एवं फलित का सिद्वान्त

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प्रिय पाठक गण-                   सप्तवर्गी जन्म कुण्डली के निर्माण मे द्वादशांश कुण्डली का विशेष महत्व है इस कुंडली से (स्याद द्वादशांशे -पितृमातृसौख्यम ) माता पिता के सुख दुख के बारे मे जानकारी प्राप्त किया जाता है । जातक के जीवन मे शरीर, धन धान्य , भाइयों और पत्नी के सुखो के अलावा इस दुनिया मे उनके माता पिता भी होते है । अतः जातक के माता पिता के सुख दुख का प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से जातक के जीवन पर पडता है जैसे जातक के जन्म समय मे माता पिता अस्वस्थ हो दुखी हो गरीब हो तो बालक के पालन पोषण मे कई प्रकार की समस्याये आती है स्वस्थ, नीरोगी और घन धान्य से परिपूर्ण रहने पर जातक का परवरिश सुख सुविधा के साथ होता है । परन्तु इन भौतिक सुखो के अलावा जातक के साथ माता पिता के अन्य सुख दुख भी जुडे है जैसे माता पिता के द्वारा जातक का परवरिश होता है वैसे ही जातक के द्वारा भी माता पिता को कई प्रकार का सुख मिलता है । इसलिये द्वादशांश कुण्डली के द्वारा माता पिता का सुख दुख कैसा होगा यह जानने के लिये द्वादशांस कुंडली का निर्माण करते हैं । मानसागरी जैसे ग्रंथों मे द्वादशांश के द्वारा जातक का आयु निर्धारण भी

सूर्योदय सूर्यास्त निकालने की विधि

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मित्रों मैने ज्योंतिष के हर गंभीर विषय पर लेख लिखा है फिर भी कहीं न कही कोई कमी रह ही जाता है । हमारे पोस्टो पर कई मित्रो ने कमेंट मे सूर्योदय निकालने की विधि जानने की जानने की इच्छा प्रकट किये है इसलिये  मै इस संबंध मे एक पोस्ट लिख रहा हूं ताकी जिज्ञासु विस्तार पूर्वक जान सके और सहजता से सूर्योदय का सही समय निकाल सके । मित्रो सूर्योदय हमारे जीवन के लिये बहुत ही महत्वपूर्ण है और हम इसी सूर्योदय से अपने दैनिक जीवन के कई महत्वपूर्ण कार्य करते हैं सूर्योदय केवल जन्म पत्रिका के लिये ही नहीं बल्कि मुहूर्त आदि मे भी इसका उपयोग किया जाता है । इसलिये सही सूर्योदय जानना बहुत जरूरी होता है हर स्थान के पंच्चांगो मे स्थानीय सूर्योदय सूर्यास्त लिखा होता है मगर ये पंच्चांग किसी बडे शहरो का होता है भारत जैसे देश मे बडे बडे शहर है इसलिये एक शहर से दूसरे शहर का सूर्योदय समान नहीं होता है इसलिये हर स्थान का स्थानीय समय निकालने की जरूरत होती है । मित्रो  सूर्योदय निकालने की विधि जानने से पहले हमे समय भेद को अच्छी तरह से समझना होगा तभी हम इस प्रक्रिया को हम समझ सकते है । अन्तर्राष्ट्रीय समय ग्रीनविच टाइम

नवमांस चक्र कैसे बनाये |

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प्रिय पाठक गण 😊😊 😊  👉 जन्म पत्रिका निर्माण के क्रम में सप्तवर्गी कुण्डली का बिशेष महत्व है और उसमे भी नवमांश चक्र का अति विशेष महत्व है सत्य तो यह है की जन्म कुण्डली का लग्न शरीर है तो नवमांश प्राण है और प्राण के विना शरीर महत्वहीन हो जाता है इसी प्रकार जन्म पत्रिका नवमांश के विना महत्वहीन होता है जन्म पत्रिका में समस्त फलो की सिद्धि नवमांश से ही होता है | नवमांश चक्र भी उसी प्रकार बनता है जिस प्रकार होरा चक्र ,द्रेष्काण चक्र ,और सप्तमांश चक्र बना है अर्थात एक राशि में ३० अंश होता है और ३० अंश में नौ नवमांश होता है और एक नवमांश का मान ३ अंश २० कला होता है  तथा  मेष ,सिंह ,धनु राशि का पहला  नवमांश मेष राशि से आरम्भ होता है एवं  वृष ,कन्या ,व मकर राशि में पहला नवमांश मकर से और मिथुन ,तुला ,व कुम्भ राशि में पहला नवमांश तुला से और  वृश्चिक ,मीन व  कर्क का पहला नवमांश कर्क से प्रारम्भ होता है|  सरलता के लिए इस चक्र को देख सकते है |            नवमांश चक्रम  अब हम इस चक्र की सहायता से नवमांश कुण्डली का लग्न निर्धारित करेंगे जैसे हम होरा,द्रेष्काण ,सप्तमांश का करते आये है इसके लिए भी हम व

सप्तमांश चक्र कैसे बनाये |

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प्रिय पाठक गण 😞😞😞                                                   सप्तवर्गी जन्म पत्रिका में सप्तमांश चक्र बहुत ही मत्वपूर्ण चक्र है इस चक्र से सन्तान से संबन्धित सभी जानकारिया उपलब्ध होता है आज इस भौतिकवादी युग में सन्तान की जानकारी कौन नहीं चाहता है इसलिए सप्तमाँस चक्र की आवश्यकता होती है |  भारतीय ज्योतिष में यह चक्र ऐसा है जिस पर सबसे अधिक ध्यान दिया जाता है क्योंकि ये चक्र ऐसा है जंहा हम दो के बाद हमारे दो की गणित होता है कितने पुत्र होंगे कितनी पुत्रिया होंगी कमजोर होंगे मजबूत होंगे इनके आपसी सम्बन्ध किस प्रकार के होंगे इसकी पूरी जानकारी यही चक्र देता है तो आइये इस चक्र की समूर्ण जानकारी प्राप्त करते है |  इससे पहले हम होरा कुण्डली और द्रेष्काण कुण्डली का वर्णन कर चुके है उसकी जानकारी के लिए लिंक का प्रयोग कर सकते है |    होरा कुण्डली की जानकारी के लिए यंहा क्लिक करे |       द्रेष्काण कुण्डली की जानकारी के लिए यंहा क्लिक करे |      पंचधा मैत्री की जानकारी के लिए यंहा क्लिक करे |        ग्रह स्पष्ट की जानकारी के लिए यंहा क्लिक करे |  सप्तमांश चक्र बनाना बहुत ही आसान है एक रा

द्रेष्काण चक्र कैसे बनाये |

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प्रिय पाठक गण 😁😁                     👉  द्रेष्काण कुण्डली  जन्म कुण्डली का अहम् भाग है यह सप्त वर्ग का दूसरा वर्ग है जिस प्रकार जन्म कुण्डली का तीसरा घर मत्वपूर्ण है ठीक उसी प्रकार सप्तवर्ग में तीसरा वर्ग महत्वपूर्ण है क्योंकि इस कुण्डली {चक्र }से भाइ बहनो की संख्या तथा उनके बिच एक दूसरे के प्रति लगाव अर्थात प्रेम  और शत्रुता आदि की जानकारी मिलता है  इसके आलावा भी इस चक्र की उपयोगिता है इस चक्र से बीमारी आदि की भी जानकारी प्राप्त होता है | इस चक्र को  बनाना बहुत ही आसान है जैसा की आप सभी जानते है ३० अंश  की  एक राशि   होता है ठीक इसी प्रकार १० अंश का एक द्रेष्काण होता है अर्थात राशि का तीसरा भाग द्रेष्काण होता है इस प्रकार एक राशि में तीन द्रेष्काण होता है इसकी गणना आप इसप्रकार कर सकते है १ से १० अंश तक राशि का पहला होरा और ११ से २० तक राशि का दूसरा होरा एवं २१ से ३० अंश तक तीसरा होता है इस प्रकार १२ राशि में ३६ द्रेष्काण होता है | द्रेष्काण चक्र बनाने का नियम यह है की जिस राशि का द्रेष्काण ज्ञात करना हो तो प्रथम द्रेष्काण उसी राशि का होगा और दूसरा द्रेष्काण उसके पांचवे राशि का होगा

होरा चक्र साधन कैसे करे

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प्रिय पाठक गण                                            जन्म कुण्डली निर्माण से सम्बंधित बहुत से प्रकरणों की हम चर्चा पिछले पोस्टो में करते आये है अब हम जन्म कुण्डली के महत्वपूर्ण भाग षड वर्ग साधन की चर्चा करेंगे ,  भारतीय ज्योतिष शास्त्र में तीन प्रकार कि कुण्डली निर्माण का विधान बताया गया है |  १- सप्तवर्गी २-दसवर्गी ३-षोडशवर्गी , वर्तमान समय में  सप्तवर्गी कुण्डली ही बनाया जाता है दस वर्गी और षोडशवर्गी कुण्डली बहुत कम लोग बनवाते है कारन इसमें समय बहुत लगता है और पैसा भी अधिक लगता है इस तरह  की कुण्डली वर्तमान में संभव नहीं है यह बिधा लगभग लुप्तप्राय हो चुकी है इसलिए जो चल रहा है हम उसकी ही चर्चा कर रहे है | सप्तवर्गी कुण्डली में सात चक्र होते है लग्न ,होरा ,द्रेष्काण ,सप्तमांश ,नवमांश ,द्वादशांस और त्रिशांश ,इन सातो चक्रो से सात चींजे देखी जाती है |  लग्न से शरीर के सम्बन्ध में जानकारी मिलता है  ,होरा से धन सम्पति व अचानक आने वाली विपत्ति की जानकारी मिलता है, द्रेष्काण से भाई बहनो की शंख्या ,भाईओ और बहनो में प्रेम शत्रुता एवं कर्मफल की जानकारी मिलता है , सप्तमांश से पुत्र पुत्री क

पञ्चधा मैत्री चक्रम

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😓 प्रिय पाठक गण-                     💢  जनम कुंडली निर्माण में  जिस प्रकार  पत्रिका  शुद्ध बने इसकी व्यवस्था हमें करनी पड़ती है  वैसे ही जन्म कुण्डली हर संसाधनों से परिपूर्ण हो इसकी भी हमें व्यवस्था करनी पड़ती है क्योंकि कुण्डली निर्माण के बाद जब हम फलादेश करते है तब हमें इन संसाधनों कि आवश्य्कता पड़ती है |  ज्योतिष के बहुत सारे संसाधनों में एक संसाधन पंचधा मैत्री चक्र है  यह चक्र बहुत ही आवश्यक है इसी चक्र से पता चलता है कि कौन ग्रह हमारे लिए शुभ है और कौन ग्रह अशुभ है किसकी दशा शुभ  होगी और किसकी दशा अशुभ होगी  यदि यह चक्र शुद्ध नहीं बना तो पता चलेगा शुभ ग्रह को हमने अशुभ घोषित कर दिया और अशुभ को सम बना दिया तो मनुष्य के जीवन से जनम कुण्डली का मिलान नहीं हो पायेगा और सब उलट पलट फलादेश होने लगेगा इसलिए जरुरत है कि हम शुद्ध पंचधा चक्र का निर्माण करे |  शुद्ध पंचधा चक्र का निर्माण करने से पहले हम यह जानेंगे की इस चक्र को पंचधा कहते क्यों है क्या है इस चक्र में और क्यों जरुरत है इस चक्र की आइये इसकी विस्तार से चर्चा करते है |  पंचधा चक्र पांच प्रकार के मैत्री से बनता है  यह पांच मैत्री इस