द्रेष्काण चक्र कैसे बनाये |


प्रिय पाठक गण 😁😁

                    👉  द्रेष्काण कुण्डली  जन्म कुण्डली का अहम् भाग है यह सप्त वर्ग का दूसरा वर्ग है जिस प्रकार जन्म कुण्डली का तीसरा घर मत्वपूर्ण है ठीक उसी प्रकार सप्तवर्ग में तीसरा वर्ग महत्वपूर्ण है क्योंकि इस कुण्डली {चक्र }से भाइ बहनो की संख्या तथा उनके बिच एक दूसरे के प्रति लगाव अर्थात प्रेम  और शत्रुता आदि की जानकारी मिलता है  इसके आलावा भी इस चक्र की उपयोगिता है इस चक्र से बीमारी आदि की भी जानकारी प्राप्त होता है |

इस चक्र को  बनाना बहुत ही आसान है जैसा की आप सभी जानते है ३० अंश की एक राशि  होता है ठीक इसी प्रकार १० अंश का एक द्रेष्काण होता है अर्थात राशि का तीसरा भाग द्रेष्काण होता है इस प्रकार एक राशि में तीन द्रेष्काण होता है इसकी गणना आप इसप्रकार कर सकते है १ से १० अंश तक राशि का पहला होरा और ११ से २० तक राशि का दूसरा होरा एवं २१ से ३० अंश तक तीसरा होता है इस प्रकार १२ राशि में ३६ द्रेष्काण होता है |


द्रेष्काण चक्र बनाने का नियम यह है की जिस राशि का द्रेष्काण ज्ञात करना हो तो प्रथम द्रेष्काण उसी राशि का होगा और दूसरा द्रेष्काण उसके पांचवे राशि का होगा तथा तीसरा द्रेष्काण उस राशि के नवे राशि का होगा जैसे मेष राशि का पहला द्रेष्काण मेष का होगा और दूसरा मेष से पांचवी राशि सिंह होगा और तीसरा द्रेष्काण मेष से नौवीं राशि धनु होगा ऐसे ही वृष का [पहले वृष दूसरा कन्या और तीसरा मकर होगा  तथा चर राशि का स्वामी नारद और स्थिर राशि का स्वामी अगस्त और द्विस्भाव का स्वामी दुर्वासा है  इसे आप सहजता से इस फोटो से समझ सकते है | 

अबतक हमने  द्रेष्काण बनाने की विधि बताया है अब इसे द्रेष्काण कुण्डली में कैसे भरेंगे इसके लिए क्या करना होगा अब इसकी चर्चा करते है | 
जिस प्रकार हम होरा कुंडली का लग्न निर्धारित किये थे उसी तरह हम द्रेष्काण का लग्न निर्धारित करेंगे इसके लिए भी हम वही ग्रह चार्ट लेंगे जो हमने होरा कुंडली में प्रयोग किया था वह चार्ट ऊपरी फोटो में  है | 
आप देख रहे की ऊपरी चार्ट में लग्न मीन राशि का २ अंश पर है इसलिए द्रेष्काण कुंडली का लग्न मीन का पहला द्रेष्काण  मीन होगा अतः द्रेष्काण के लग्न भाग १२ अंक लिख कर शेष सभी भावो में अंक अंकित कर देंगे| 

अब ग्रहो का द्रेष्काण निकालेंगे ऊपरी चार्ट में सूर्य का मान कन्या का १० अंश बीत चूका है इसलिए कन्या का दूसरा द्रेष्काण मकर है इसलिए मकर की राशि में सूर्य को स्थापित करेंगे |  

चन्द्रमा तुला का १७ अंश है इसलिए तुला का दूसरा द्रेष्काण कुम्भ होगा अतः  चंद्र को कुम्भ में स्थापित करेंगे| 

मंगल वृश्चिक के १५ अंश से अधिक ग्रह स्पस्ट है इसलिए मंगल मीन राशि में जायेगा | 

बुध तुला के ५ अंश पर है इसलिए बुध तुला राशि में ही रहेंगे | 

गुरु कर्क के २१ अंश पर होने के कारन कर्क का तीसरा द्रेष्काण मीन होगा अतः गुरु मीन में जायेगा | 

शुक्र कन्या के ३ अंश पर तो पहला द्रेष्काण कन्या में ही रहेगा | 

शनि तुला का तीसरा द्रेष्काण मिथुन में और राहु कन्या के तीसरे द्रेष्काण वृष में तथा केतु मीन का तीसरा द्रेष्काण वृश्चिक में जायेगा |

 इस प्रकार किसी भी लग्न का द्रेष्काण चक्र सहजता से बन जायेगा | 

आशा है यह लेख आप सभी के लिए उपयोगी होगा इस लेख से आप सभी ज्योतिष पिपासु अवश्य लाभ उठाएंगे | 
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