संदेश

2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

होरा साधन और चक्र निर्माण

चित्र
जन्म पत्रिका का निर्माण तीन वर्गों का होता है सप्त वर्गी, दश वर्गी, और षोडश वर्गी । सामान्यतः सप्त वर्गी जन्म पत्रिका ही ज्यादा प्रचलन मे है अतः हम सप्त वर्गी का ही वर्णन करते है । सप्त वर्गी के सात वर्गों के नाम इस प्रकार है लग्न, होरा, द्रेष्काण, सप्तमांश, नवमांश, द्वादशांश, और त्रिशांश । जन्म पत्रिका मे लग्न और चलित के बाद होरा चक्र का नम्बर आता है । सबसे पहले हम समझते है कि होरा का अर्थ क्या है । होरा राशि विभाजन का खंड है अर्थात् एक राशि किसी भी राशि के आधे भाग को होरा कहा जाता है जैसे लग्न 5 घटी की होता है तो उसका होरा अढाई घटी की होगा । यंहा प्रकरण राशि का है अतः राशि का आधा भाग होरा होता है इसको सही तरह समझने के लिये हम ऐसे समझ समझ सकते है कि एक राशि के दो भाग है प्रथम भाग को प्रथम होरा और द्वितीय भाग को द्वितीय होरा कह सकते है इस प्रकार देखा जाय तो एक राशि 30 अंश का होता है तो उसका आधा अर्थात् 15 अंश का प्रथम होरा होता है और प्रथम 15 अंश के बाद के 15 अंश द्वितीय होरा होता । इन राशियों के होरा स्वामी सूर्य और चंद्रमा होते है । सौर मंडल की राशियां भी सम विषम होती ह

चलित चक्र और प्रयोग विधि

चित्र
जन्म पत्रिका मे लग्न के बाद दूसरा स्थान चलित चक्र का आता है फलित ज्योतिष मे कहा गया है । विना चलित चक्रेण यथोक्तं भावजं फलम् । नारि यौवन सम्प्राप्तं पतिहीना यथा भवेत् ।। जिस प्रकार से षोडश शृंगार से युक्त भरपुर यौवन को प्राप्त षोडशी पत्नि के विना कोइ मुल्य या कोइ सार्थकता नहीं रह जाती है ठीक उसी प्रकार से षोडश वर्ग के अलंकार से युक्त जन्म पत्रिका का चलित चक्र के विना कोइ सार्थकता नहीं रह पाती है । शास्त्रों मे लिखा है । भाव प्रवृतौ हि फल प्रवृति: पूर्ण फलं भावसमाकेषु । ह्रास: क्रमाद् भावविराम काले फलस्य नाश:कथितौ मुनिन्द्रै:।। अर्थात् भाव की पुष्टि से ही फलादेश की ओर प्रवृत होना चाहिए ।जिस भाव के अंश पूर्ण हो तो पूर्ण फल उस भाव को मिलेगा भाव के विराम होने पर या ह्रास होने पर उस भाव का फल भी नष्ट हो जाता है । भाव और संधि के विचार से ग्रहो को ठीक ठीक स्थिति बताने के लिये ही चलित कुंडली बनाई जाती है भाव और संधि से यह स्पष्ट हो जाता है कि भाव का आरंभ कंहा से है मध्य कंहा है और अंत कंहा है । नोट- पिछले पोस्ट मे आपने भाव लग्न निकालने की विधि से भाव लग्न निर्धारित कैसे करते

अयनांश साधन की रीति ।

      ।। इष्टकालिक अयनांश साधन की रीति ।। अथ शराब्धियुगै रहित: शक्रो, व्यवहृत: खरसैरयनांशकां:। मधुसितादिकमासगणं प्रति,  शरपलै: सहितं कुरू सर्वदा ।। अयनांश जानने के लिये शाके संवत् मे 445 घटाकर जो शेष बचे उसमें 60 से भाग देने पर लब्धि अयनांश और शेष उसकी कला होती है ।चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से जन्म मास तक जितने मास विते हो उस संख्या को 5 से गुणा करने पर जो लब्धि आये वह विकला होता है और इस विकला को जोडने से इष्टकालिक अयनांश होता है ।                            || -उदाहरण- || शाके संवत् प्राप्त करने का सबसे सरल तरीका है सन् मे 57 जोडने से विक्रम संवत् होता है और इस विक्रम संवत् मे 135 घटाने से शाके संवत् होता है जैसे 2017मे 57 जोडा तो 2074 आया इसमें 135 घटाया तो 1929 शाके संवत् प्राप्त हुआ । इस शाके संवत् 1929 मे 445 घटाया तो 1494 आया इसमें 60 से भाग दिया तो लब्धि 24 और शेष 54 आया विकला जानने के लिये हमने चैत्र माह का अंक 1 लिया इसमें 5 से गुणा करने पर गुणनफल 5 आया इसको हमने 24/44 मे जोडा तो इष्टकालिक अयनांश 24/44/05 आया । ग्रह लाघव के मत से भी अयनांश निकालने की यही विधि है अंतर क

भाव लग्न का महत्व और निकालने की विधि ।

चित्र
           ।। लग्न परिचय और निर्धारण  ।।        तात्कालार्क: सायन: स्वोदघ्ना: भोग्यांशा: खत्र्युद्घृता भोग्यकाल: । एवं यातांशैर्भवेद्याताकालो भोग्य: शोध्य$भीष्टनाडीपलेभ्य: ।। तदनु जहीह गृहदयांश्च शेषं गगनगुणघ्नभशुद्धहल्लवाद्यम । सहितमजादिगृहैशुद्धपूर्वैर्भवति विलग्नमदो$यनांश हीनम् ।। जिस दिन का और जिस समय का लग्न निर्धारण करना है उस दिन का इष्टकाल, अयनांश, और स्पष्ट सूर्य को नोट कर लेना चाहिये । इष्टकालिक स्पष्ट सूर्य मे अयनांश जोडकर सायन सूर्य बना लेना चाहिये । अयनांश कैसे निकालते है इसका विवरण अलग से दिया गया है पाठक गण इसी ब्लाग मे अयनांश साधन की रीति नामक पोस्ट पढ सकते है । सायन सूर्य के अंशों को 30 मे घटाकर भोग्यांश निकालकर नोट कर लेना चाहिये । इस भोग्यांश मे स्वोदय मान से गुणा कर 30 से भाग देने पर लब्धि पलादि भोग्य काल होता है । इस पलादि भोग्य काल को प्लात्मक इष्टकाल मे घटाकर शेष को सायन सूर्य की अग्रिम राशि के स्वोदय मान क्रम से घटाना चाहिए जितनी राशियों के स्वोदय मान घट जाये वो शुद्ध राशि और जो न घटे वह अशुद्ध राशि होता है । फिर शेष को 30 से गुणा करके अशुद्ध राशि

सूर्योदय से इष्टकाल का निर्धारण ।

जन्म कुण्डली निर्माण मे इष्टकाल और लग्न का बहुत ही महत्व होता है यह आप सब दिनमान से लग्न निकालने की विधि से जान चुके होंगे ।यह इष्टकाल जितना शुद्ध होगा उतना ही शुद्ध लग्न होगा और उतना ही शुद्ध कुण्डली अर्थात् जन्म पत्रिका बनेगी । कहने का मतलब है इष्टकाल जन्म पत्रिका रूपी महल (मकान) का नीव (आधार) है यह आधार जितना मजबूत होगा मकान उतने मजबूत बनेगी इसी प्रकार से इष्टकाल जितना शुद्ध होगा कुण्डली उतनी ही शुद्ध बनेगी । अभी तक आपलोगों ने दिनमान से इष्टकाल निकालने की विधि को जाना है अब हम सूर्योदय से इष्टकाल और लग्न निकालने की विधि लिखेंगे जो दिनमान की विधि से बहुत ही आसान और सरल है इसे हम आसानी से समझ सकते है । जिस प्रकार हम दिनमान से लग्न निकालते है ठीक उसी प्रकार से सूर्योदय से निकालेंगे वैसे दोनो का परिणाम एक समान ही आता है पर कभी कभी एकाध पल का अंतर आ जाता है । सबसे पहले हम पंचांग मे लिखित सूर्योदय को नोट कर ले इस सूर्योदय मे संकेता अनुसार रेलवे अंतर का संस्कार करे ।संस्कार करने के बाद जो समय आयेगा उसको नोट करले तथा जन्म समय मे इस संस्कारित समय को घटा कर शेष को घटी पल बनाले तथा इ

दिनमान से इष्टकाल और लग्न निकालने की विधि ।

चित्र
प्रिय पाठक गण जन्म पत्रिका निर्माण मे सबसे पहला कार्य है लग्न का निर्धारण । लग्न निर्धारण जितना शुद्ध होगा कुण्डली उतनी ही शुद्ध बनेगी इसलिए लग्न का निर्धारण बहुत ही महत्वपूर्ण है । लग्न निर्धारण का पहला अंग है इष्टकाल इसी इष्टकाल के आधार पर जन्म पत्रिका या कुण्डली का निर्माण किया जाता है । इष्ट काल निकालने की शास्त्रों मे कइ प्रकार की विधि बताया गया है मगर 2 विधि विशेष प्रचलित है 1- दिनमान से 2- सूर्योदय से हम यंहा दिनमान से इष्टकाल और इष्टकाल से लग्न बनाने अथवा निकालने की विधि बता रहा हूं ।           ।। दिनमान से लग्न निकालने की पद्धति ।। यदि पंचांग की सहायता से जन्म पत्रिका का निर्माण करना हो तो सबसे पहले पंचांग मे लिखा दिनमान नोट करले इसके बाद उक्त दिनमान का आधा करके अर्ध दिनमान या दिनार्ध भी नोट करले इसी प्रकार से 60 मे दिनमान घटा कर रात्रिमान नोट करले और रात्रिमान को आधा करके दिनमान मे जोडकर अर्धरात्रिमान या रात्यर्ध भी नोट करले । यदि जन्म समय दिन के 12 से पहले का हो तो जन्म समय 12 मे घटावे यदि जन्म समय 12 के बाद हो तो जन्म समय को घटी पल बनाकर दिनार्ध मे जोडे । किसी भ

जन्म कुण्डली निर्माण कैसे करे ।

चित्र
ज्योतिष रूपी कल्प वृक्ष का मूल ग्रहगणित है सिद्धान्त संहिता और होरा इसकी तीन शाखायें है षोडश वर्ग उसकी सोलह मंजरियाँ है और फलित इस वृक्ष का सुशोभित मीठा फल है । परंतु इस मीठे फल को प्राप्त करने के लिए हमे जन्म पत्रिका का निर्माण करना होगा । आइये जानते है जन्म कुण्डली का निर्माण कैसे होगा । जन्म कुण्डली निर्माण के लिए हमे तीन चीजों की आवश्यकता होती है । 1- जन्म तिथि या जन्म दिनांक 2- जन्म समय और 3- जन्म स्थान ये तीनों जब शुद्ध और सही प्राप्त होगा तो शुद्ध जन्म कुण्डली का निर्माण होगा ।              ।।जन्म तिथि या जन्म दिनांक- ।। पहले के जमाने मे जन्म तारीख तिथि मिति और संवत् मे लिखा जाता था जैसे चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा 2074  आज के समय मे जन्म तारीख या दिनांक मे लिखा जाता है जैसे 29 मार्च 2017 मगर दिनांक बहुत सावधानी से लिखना चाहिये कभी कभी रात के 12 बजे के बाद का दिनांक लिखते समय अक्सर त्रुटि हो जाया करती है । हमारे भारत मे सूर्योदय से सूर्योदय तक एक दिन होता है मगर अंग्रेजी मे रात्रि 12 बजे के बाद दिनांक बदल जाता है इसलिए आजकल यदि 12 बजे रात्रि के बाद जन्म हो तो जन्म समय

भयात भभोग निकालने की विधि ।

चित्र
जन्म पत्रिका मे भयात भभोग का बहुत महत्व होता है भयात भभोग इतने उपयोगी होते है कि इसके विना ज्योतिष का कोई भी कार्य सम्पन्न नही हो सकता है अतः ज्योतिष कार्य के लिये भयात भभोग आवश्यक है । भयात  के लिये शास्त्रों मे लिखा है । नक्षत्रारम्भत: स्वेष्टकालं यावद् गतं हि तत् । घटयादिकं भयातं तद भस्य भोगो भभोग:।। वर्तमान नक्षत्र आरंभ से लेकर इष्टकाल पर्यंत जितना समय (घटी पल) व्यतीत हुआ हो वह भयात होता है और नक्षत्र के आरंभ से अंत तक का समय (घटी पल) भभोग कहलाता है । इस प्रकार से पंचांग मे नक्षत्र के घटी पल देखकर सहजता से भयात भभोग बन जाता है । इसे और सहज रूप से समझने के लिये दूसरे सूत्र का प्रयोग करना चाहिए जो बहुत ही सहज है । षष्टया गतर्क्षघट्याद्यं शोध्यं स्वेस्ट घटी युतम । भयातं स्यात् तथा स्वर्क्षघटीयुक्तं भभोगक: ।। गत (वर्तमान से पहला नक्षत्र की पंचांगस्थ घटी को 60 मे घटा कर शेष मे इष्टकाल जोडने से भयात होता है और उसी शेष मे वर्तमान नक्षत्र की पंचांगस्थ घटी पल जोडने से भभोग होता है । नोट- पंचांगर्क्षघटी मानादिष्टकालो$धिकस्तदा ।         तदन्तर भयातं स्याद् भभोग: प

सर्व कार्य सिद्धि होरा मुहूर्त

चित्र
प्रिय पाठक गण- -                     भारतीय ज्योतिष के 3 अंग गणित सिद्धान्त और होरा है ।और जिस प्रकार से जातक ग्रंथों मे होरा का महत्व है उसी प्रकार मुहूर्त मे भी होरा का महत्व है होरा मुहूर्त अपने आप मे सिद्ध मुहूर्त होता है । मानव के जीवन मे कुछ समय ऐसा भी आता है की न चाहते हुये भी कार्य करना पडता है जैसे यात्रा पूर्व निर्धारित तिथि पर भी होता है और अचानक भी ठीक इसी प्रकार बहुत सारे कार्य हमे अचानक करना पड जाता है । अचानक यात्रा करनी है मगर दिशा शूल है अतः या तो हम न जाये या दिशा शूल मे यात्रा करे ।ऐसे ही परिस्थितियों का आकलन करके मनीषियों ने होरा मुहूर्त का निर्धारण किया ताकी कोई कार्य अचानक करना पड जाये तो हम होरा मुहूर्त के माध्यम से कार्य करले और हमे कार्य की सिद्धि प्राप्त हो जाये । होरा मुहूर्त के संबंध मे शास्त्रों मे लिखा है । कालहोरेति विख्यातं सौम्ये सौम्यफलप्रदा । सूर्य शुक्र बुधाश्चंद्रो मंदजीवकुंजा: क्रमात् ।। होरा मुहूर्त पूर्ण फलदायक और अचूक होता है । आइये जानते है यह मुहूर्त कैसे बनता है । आप सभी जानते है सूर्योदय से सूर्योदय तक का 1 अहोरात्र होता है और 1 अहो

विशेष महत्वपूर्ण मुहूर्त ।

चित्र
प्रिय पाठक गण--                   भारतीय ज्योतिष मे मुहूर्त का विशेष महत्व है हम कोई भी कार्य करना चाहते है तो अच्छे मुहूर्त मे ही करना चाहते है यात्रा हो विवाह उपनयन या पुजा पाठ अथवा कोई भी शुभ कार्य करने के पहले हमे मुहूर्त की आवश्यकता होती है । आइये सबसे पहले हम जानते है कि मुहूर्त क्या है हमारे यंहा समय की गणना के लिये बहुत सी पद्धतियाँ है और हम सूक्ष्म से सूक्ष्म गणित इन्हीं पद्धतियों के माध्यम से करते है इन्हीं पद्धतियों मे एक पद्धति है मुहूर्त इस मुहूर्त के पद्धति से हम शुभ समय निकालते है जिसमें हम शुभ कार्य आरंभ करते है । 1 मुहूर्त का समय 2 घटी अर्थात् 48 मिनट होता है । और इस प्रकार हमारे 1 दिनमान मे 16 मुहूर्त निवास करता है । पंच्चांग देखने की विधि जानने के लिये यहां क्लिक करे ये हमने संक्षिप्त मे मुहूर्त का परिचय बताया है । आप सभी जानते है कि हमारे जीवन मे मुहूर्त का क्या महत्व है और उसकी क्या उपयोगिता है ये बताने की आवश्यकता नहीं है । उपनयन, विवाह, गृह प्रवेश, गृहारंभ, देव प्राण प्रतिष्ठा आदि बहुत से कार्य ऐसे है जिनके लिए हम पहले मुहूर्त का निर्धारण करते है फिर

करण कैसे बदलते है ।

चित्र
प्रिय पाठक गण- -                      भारतीय ज्योतिष मे काल के अंग के रूप मे करण का भी महत्व है । एक तिथि मे 2 करण होते है । तिथि के आधे भाग को करण कहा जाता है ।सूर्य से चंद्रमा की की प्रति 6 अंश की दुरी पर एक करण होता है और 12 अंश पर 1 तिथि होता है ।इस प्रकार 1 मास मे 60 करण होते है मुख्य 7 करण है जो चर करण कहलाते है 1 माह मे इन 7 करणो की (प्रत्येक करण की) आठ (8)आवृति होती है बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज, एवं विष्टि इनका नाम है ये चर करण कहलाते है । इसके अलावा 4 करण और होते है जो स्थिर करण कहलाते है ये कभी बदलते नहीं है शकुन, चतुष्पाद, नाग, और किस्तुघ्र इनका नाम है इन चारो कि तिथि हमेशा एक ही होती है जैसे कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के उत्तराध्र मे शकुन, अमावस्या के पूर्वार्ध मे चतुष्पाद, और उतराध्र मे नाग तथा शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के पूर्वार्ध मे किंस्तुघ्र करण होता है । पंच्चांग देखने की विधि जानने के लिये यहां क्लिक करे करण तथा करण का समाप्ति समय निकालने की विधि- किसी भी दिनांक का करण निकालने का सूत्र इस प्रकार है । जिस तिथि का करण ग्यांत करना हो (4 स्थिर करणो को छोडकर) उस तिथि क

स्पष्ट चंद्र कैसे निकाले ।

चित्र
प्रिय पाठक गण- -                      भारतीय ज्योतिष मे चंद्रमा का बहुत ही महत्व है ज्योतिष मे चंद्रमा को मन का कारक बताया गया है साथ ही चंद्रमा को शीघ्रगामी ग्रह भी बताया गया है । वास्तव मे चंद्रमा सभी ग्रहो से तीव्र चलने वाला ग्रह है ।  चंद्रमा के राशि अंशों के द्वारा तिथि, नक्षत्र, योग आदि का निर्धारण होता है अतः स्पष्ट चंद्र का बहुत महत्व है । आजकल कइ पंचांगो मे दैनिक ग्रह तालिका मे चंद्रमा का स्पष्ट मान राशि अंश कला विकला मे लिखा मिल जाता है  मगर कइ पंचांगो मे नही लिखा होता है ।  पंच्चांग देखने की विधि जानने के लिये यहां क्लिक करे हम अक्सर देखते है कि पत्रिका बनाते समय अन्य ग्रहो के साथ हम चंद्रमा का स्पष्ट मान भी पंचांग से देखकर लिख देते है मगर चंद्रमा अति शीघ्रगामी होने के कारण प्रातः से इष्टकाल तक बहुत अंतर आ जाता है अन्य ग्रहो मे कोई खास अंतर नहीं होता है मगर चंद्रमा मे बहुत अंतर आ जाता हैं इसलिए इष्टकाल के अनुसार चंद्रमा का स्पष्ट मान निकालकर ही पत्रिका बनानी चाहिए । आइये आज हम स्पष्ट चंद्र का मान निकालना सिखते है । माना कि हमे दिनांक 1 अप्रैल 2017 को वाराणसी

योग कैसे बदलते है ।

चित्र
प्रिय पाठक गण                      भारतीय ज्योतिष के अंतर्गत काल के पांच प्रमुख अंग वार, तिथि, नक्षत्र, योग और करण माने गये हैं जिसमे आज हम योग कैसे बदलते है ये बतायेंगे । योग शब्द का तात्पर्य काल के दो अंगों का जोड है 2 भाग को जोडना ही योग है । पंच्चांग देखने की विधि जानने के लिये यहां क्लिक करे योग दो प्रकार का होता है पहला आनंन्दादि 28 योग जो वार और नक्षत्र के संयोग से बनता है । 27 नक्षत्र तो होते ही है मगर योग मे नक्षत्रों की संख्या 28 हो जाता है और इसमें अभिजित नक्षत्र और जुड जाता हैं जिससे इसकी संख्या 28 हो जाता है । यह योग वार और नक्षत्र के संयोग से बनता है जैसे रविवार हो और अश्विनी नक्षत्र हो तो आनन्द योग होता है । इसी प्रकार सोम +मृगशिरा एवं मंगलवार + आश्लेषा और बुधवार +हस्त गुरूवार +अनुराधा शुक्रवार +उत्तराषाढ़ा तथा शनिवार +शतभिषा के संयोग से बनता है । इन्हीं वारो के साथ इनसे अगले नक्षत्रों को मिलाने से अगला योग बनता है । यह योग सूर्योदय से सूर्योदय तक रहता है इसमें कोई बदलाव नही होता है ।इनमें आनन्द, घाता, सौम्य, केतु ,श्रीवत्स ,छत्र ,मित्र, मानस ,सिद्धि, शुभ ,अमृत ,मा

नक्षत्र समाप्ति समय निकालने की विधि

चित्र
प्रिय पाठक गण-                      भारतीय ज्योतिष मे नक्षत्र का बहुत ही महत्व है । मानव जन्म के समय चंद्रमा जिस नक्षत्र मे होता है उसी के आधार पर उसकी राशि और राशि नाम तथा दशा आदि का निर्धारण किया जाता है अतः इसकी जानकारी तथा इनकी समाप्ति काल बहुत ही सावधानीपूर्वक निकालना चाहिए क्योंकि अगर ये गलत निकला तो राशि नाम और दशा आदि की गणना सही नहीं हो पायेगा जिससे फलित भी प्रभावित हो जायेगा । ग्रहपथ के 360 अंशों को 12 राशि मे बांटा गया है एक राशि 30 अंश की होती है । पंच्चांग देखने की विधि जानने के लिये यहां क्लिक करे । इन्हीं 360 अंशों को 27 भागों में बांट कर 27 नक्षत्र का निर्धारण किया गया है हर नक्षत्र का कोणात्मक मान 13अंश20 कला है । मगर यह कोणात्मक मान क्रम मे है जैसे अश्विनी नक्षत्र का कोणात्मक मान 13 अंश 20 कला है तो भरणी नक्षत्र का कोणात्मक मान 26 अंश 40 कला है इसी क्रम से रेवती नक्षत्र का कोणात्मक मान 360 अंश अर्थात् 12 राशि होता है । चंद्रमा 27 दिन 7 घंटे 43 मिनट 11.3 सेकेण्ड मे पृथ्वी की एक परिक्रमा करता है इसे 1 चंद्र मास कहा जाता है और इसी 1 चंद्र मास मे 27 नक्षत्र व्यतीत होत

तिथि समाप्ति काल निकालने की विधि

चित्र
प्रिय पाठक गण                       भारतीय ज्योतिष मे तिथि एक महत्वपूर्ण अंग है इसके द्वारा मुहूर्त, व्रत, त्यौहार आदि का आरंभ काल तथा समाप्ति समय सहजता से जानकारी प्राप्त किया जाता है । पंच्चांग देखने की विधि जानने की के लिये यहां क्लिक करे । जिस प्रकार हम ईस्वी सन् मे दिन को तारीखों से जानते है वैसे ही चंद्र मासो के दिनो को तिथियों के रूप मे जाना जाता है । ईस्वी कैलेण्डर मे एक वर्ष 365 दिनो का होता है और चंद्र वर्ष 354 दिन के होते है । एक चंद्र मास मे 29 दिन 12 घंटा 44 मिनट 2.9 सेकेण्ड होते है । प्रत्येक मास को 30 तिथियों मे विभाजित किया जाता है । एक तिथि की औसत अवधि 23 घंटा 37 मिनट 28.096 सेकेण्ड होती है । परन्तु चंद्रमा व सूर्य की असमान दैनिक गति के कारण तिथि समान अवधि की नही होती है । तिथि का तात्पर्य क्या है इसको समझते है एक भचक्र के 360 अंशों को 30 भागो मे बांटा गया है । प्रत्येक तिथि की कोणात्मक मान 12 अंश का होता है । सूर्य से चंद्रमा की प्रत्येक 12 अंश की दूरी को एक तिथि कहा जाता है ।इस प्रकार सूर्य एवं चंद्र के राश्यांतर के अनुसार शून्य पर अमावस्या 12 अंश पर प्रतिपदा 1

दिनमान और सूर्योदय निकालने की विधि

चित्र
पंचांगो मे जो दिनमान लिखा होता है वह दिनमान उस स्थान का होता है जिस स्थान का पंचांग बना है जैसे काशी का पंचांग है तो दिनमान काशी का है परंतु यदि आपका जन्म पटना (विहार) हुआ है तो काशी का दिनमान पटना के लिये नही होगा ऐसे मे हमे पटना का दिनमान निकालना होगा और इसे स्थानिक दिनमान कहा जाता है आइये सबसे पहले हम जानते है कि दिनमान क्या है फिर स्थानिक दिनमान निकालने की विधि बताएँगे |    पंचांग देखने की विधि जानने के लिए क्लिक करे |   हमारे यंहा भारतीय परंपरा मे 24 घंटे का एक दिन होता है जिसको ज्योतिष की भाषा मे अहोरात्र कहा जाता है अब एक अहोरात्र मे सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक का समय दिनमान कहा जाता है और सूर्यास्त से लेकर सूर्योदय तक का समय रात्रिमान कहा जाता है आइये अब जानते है कि स्थानिक दिनमान और रात्रिमान कैसे निकालेंगे इसके लिए सबसे पहले हम स्थानिक सूर्योदय निकालेंगे स्थानिक सूर्योदय निकालने कि विधि यह है कि पंचांग मे लिखे सूर्योदय के समय मे सबसे पहले रेलवे अंतर का संस्कार करेंगे यह रेलवे अंतर पंचांग के दाहिने तरफ अंत मे लिखा होता है रेलवे अंतर मे आप देखेंगे कि +4 या -2 लिखा है